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पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...269 भावों को प्रदर्शित करना ही महत्त्वपूर्ण है। मात्र नाटक प्रदर्शित कर देना लाभकारी नहीं होता है। ___ यदि प्रबंधन की अपेक्षा से चिंतन करें तो प्रतिष्ठा महोत्सव वैयक्तिक प्रबंधन, परिवार प्रबंधन, समाज प्रबंधन, धर्म प्रबंधन, भाव प्रबंधन आदि की दृष्टि से उपादेय है। __व्यक्तिगत जीवन में पंच कल्याणक महोत्सव विकास के मार्ग को प्रशस्त करता है। इससे राग-द्वेष, कषाय परिग्रह आदि पर विजयश्री प्राप्त करने का मार्ग भी प्राप्त होता है। ___पारिवारिक स्तर पर बालकों में सुसंस्कारों का रोपण किया जा सकता है। पति-पत्नी के बीच सम्बन्धों को अधिक मजबूत बना सकते हैं। इस उत्सव के द्वारा एक आदर्श दाम्पत्य जीवन की स्थापना हो सकती है।
इस प्रकार पंच कल्याणक महोत्सव कई दृष्टियों से मूल्यवान सिद्ध होता है। पंच कल्याणक महोत्सव के दौरान विभिन्न पात्र एवं उनके भाव
पंच कल्याणक महोत्सव के अन्तर्गत कृत्रिम पात्रों के द्वारा तीर्थङ्कर परमात्मा के सम्पूर्ण जीवन वृत्त का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। उस अवसर का साक्षात्कार करने वाला चन्द मिनटों के लिए नि:संदेह तीर्थङ्करों के युग में पहुँच जाता है और उसे एकाग्रता की तरतमता के अनुसार उस तरह की अनुभूति भी होती है। वस्तुत: पंच कल्याणक का विधान तीर्थङ्कर की साक्षात उपस्थिति के मनोभावों को उत्पन्न करने का सामर्थ्य प्रदान करता है। ___इस उत्सव-क्रिया में मुख्य रूप से माता-पिता इन्द्र-इन्द्राणी, मामा-मामी, दादी, भुआ, बहिन, प्रियंवदा दासी, राज ज्योतिष, हरिणगमेषी देव, धाय माता, राजसेवक, छप्पन दिक्कुमारियाँ आदि पात्र होते हैं। इन्हें अपना पात्र अदा करते हुए निम्न भाव रखने चाहिए
माता द्वारा किए जाने वाले भाव- तीर्थङ्कर की माता का किरदार निभाने वाली महिला को इन दिनों में पूरे समय स्वयं को पुण्यशाली मानना चाहिए। इसी के साथ ही यह सोचती रहे कि भले ही परमात्मा की साक्षात माता बनने का सौभाग्य नहीं मिला, परन्तु भाव जगत की अपेक्षा मैं आज उसी सुख का अनुभव कर रही हूँ जैसा माता मरुदेवी, माता त्रिशला आदि ने किया होगा।