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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...261 पर आनंद की लहर और भीतर में सभी के लिए करुणा भाव निःसृत होता रहा। इसी श्रेष्ठता के कारण जगत पूज्य पद को प्राप्त करते हैं। जब तीर्थङ्कर परमात्मा दीक्षा के लिए राजभवन से प्रस्थान करते हैं। उस समय परिवार जनों एवं देवेन्द्रों के द्वारा एक भव्य पालकी का निर्माण करवाया जाता है। परमात्मा को उसी पालकी में बिठाकर पहले मनुष्य और फिर देवतागण दीक्षा स्थल तक लेकर जाते हैं। नगरजन उन्मेष दृष्टि से प्रभु को आभूषण आदि अमूल्य वस्तुओं का त्याग करते हुए देखते हैं। परमात्मा सघन केश राशि को मात्र पाँच मष्टियों में ही उखाड़ डालते हैं। इसी के साथ हृदय से कषायों का लोच भी हो जाता है। एक राजकुमार के द्वारा समूचे संसार का परित्याग करते हुए देखकर लोगों के आँसू थमते ही नहीं है। ____ आज के भौतिक युग में हो रही दीक्षाएँ जिन धर्म की त्रैकालिक शाश्वतता को उजागर करती हैं। इस आधुनिकरण के चकाचौंध में अध्यात्म मार्ग की ओर कदम बढ़ाना सहज नहीं है। उसमें भी सुशिक्षित युवक-युवतियों एवं श्रेष्ठजनों को इस पथ पर बढ़ते देखकर लोगों का यह तर्क भी निरर्थक हो जाता है कि यह अज्ञानता या अभाव के कारण स्वीकृत पथ है। अनेक लोग इन अवसरों से धर्म मार्ग में जुड़ते हैं। जो लोग सर्वविरति धारण करने में असक्षम होते हैं वे देशविरत सम्यक्त्वी बनते हैं। परमात्मा की दीक्षा जहाँ समस्त जीव जगत के लिए कल्याणकारी बनती है वहीं परमात्म पथ का अनुसरण करने वालों की दीक्षा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में उपस्थित समुदाय के लिए श्रेष्ठ भावों के आरोहण एवं कर्म निर्जरण में हेतुभूत बनती हैं। दीक्षा कल्याणक के समय क्या भावना करें दीक्षा कल्याणक को मनाते हुए, उसमें पात्रों का किरदार अदा करते हुए या उसके साक्षी बनते हए सर्वप्रथम तो यही कल्पना करनी चाहिए कि हम साक्षात परमात्मा के दीक्षा प्रसंग में ही उपस्थित हैं। इस कल्पना मात्र से अन्तर्मन में जो भावधारा उत्पन्न होगी वह हमारी आंतरिक कलुषिताओं एवं औपचारिक वृत्तियों को दूर करने में सहायक बनती है। जब परमात्मा को हजारों मनुष्यों के साथ दीक्षित होते हुए देखते हैं उस समय भावना करें कि हे भगवन्! आपके तीर्थ में हम भी शीघ्र दीक्षित होकर जन्म-मरण की दुखमयी परम्परा का अन्त करें, क्योंकि सभी के लिए शाश्वत विश्राम स्थल मोक्ष ही है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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