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पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...237 कर्मक्षय से होने वाले ग्यारह अतिशय
5. योजन प्रमाण समवसरण की भूमि में करोड़ों देव, मनुष्य और तिर्यंच ____बाधा रहित समा जाते हैं। 6. चारों दिशाओं में पच्चीस-पच्चीस योजन तक समस्त प्राणियों के सभी
प्रकार के रोग शांत हो जाते हैं और नये रोग उत्पन्न नहीं होते। 7. सभी प्राणियों का वैर-भाव नष्ट हो जाता है। 8. ईति अर्थात धान्यादि को नाश करने वाले जीवों की उत्पति नहीं होती। 9. मरकी-महामारी नहीं होती। 10. अतिवृष्टि नहीं होती। 11. अनावृष्टि नहीं होती। 12. दुष्काल-दुर्भिक्ष नहीं होता। 13. स्वचक्र तथा परचक्र का भय नहीं होता। 14. तीर्थंकर भगवान की योजनगामिनी वाणी देव, मनुष्य और तिर्यंच सब
अपनी-अपनी भाषा में समझते हैं। 15. सूर्य से बारह गुणा तेज वाला भामंडल होता है। देवकृत उन्नीस अतिशय 16. आकाश में धर्मचक्र चलता है। 17. बारह जोड़ी अर्थात चौबीस चामर अपने आप वींझते हैं। 18. पादपीठ सहित स्फटिक रत्न का उज्ज्वल सिंहासन होता है। 19. प्रत्येक दिशा में एक के ऊपर ऐसे तीन-तीन छत्र होते हैं। 20. रत्नमय धर्मध्वजा होती है। यह इन्द्रध्वजा भी कहलाती है। 21. तीर्थंकर भगवान नौ स्वर्ण कमलों पर पाँव रखकर चलते हैं। इनमें दो के
ऊपर पग रखते हैं तथा सात पीछे रहते हैं। वे दो-दो के अनुक्रम से आगे
आते-जाते हैं। 22. समवसरण के मणि, स्वर्ण और चाँदी के तीन कोट होते हैं। 23. प्रभु स्वयं पूर्वाभिमुख विराजमान होकर देशना देते हैं। तीन दिशाओं में
व्यंतर देव प्रभु के तीन प्रतिबिम्ब (मूर्तियाँ) बनाकर प्रत्येक दिशा में एकएक विराजमान करते हैं।