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202... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
13. वास्तुसार प्रकरण, 3/47 14. प्रासाद मण्डन, पृ. 74-75 15. वास्तुसार प्रकरण, पृ. 133, गा. 45 16. शिल्प रत्नाकर, 5/154 17. अष्टाध्यायी, 5/3/96 18. ऋग्वेद, 10/130/3 19. पतञ्जलि महाभाष्य, पृ. 45 20. श्रीमद्भागवत, 11/27/13 21. प्रतिमा विज्ञान, पृ. 69-70 22. एलीमेन्ट्स ऑफ हिन्दू आइकोनोग्राफी, गोपीनाथराव, भा. 1, भूमिका-पृ.18 23. वाल्मीकि रामायण उत्तर काण्ड, 99/5/25 24. महाभारत स्त्री पर्व, 12/5/23 25. श्रीमद्भागवत, 10/48/31 26. वही, 11/27/12 27. विष्णु धर्मोत्तर पुराण, 43/31 28. शुक्रनीति, 4/4/72 29. मध्यकाल में दक्षिण भारत में पद्मासन का एक भेद अर्ध पद्मासन में प्रतिमाएँ
बनाई गई। ऐलोरा, पैठण, जिन्तूर एवं अन्य अनेकानेक स्थानों में अर्ध पद्मासन प्रतिमाएँ मिलती है। इस मुद्रा में बैठी हुई प्रतिमा का एक पाँव ऊपर और एक
पाँव नीचे रखा जाता है। 30. रक्तौ च पद्म प्रभु वासुपूज्यौ, शुक्लौ च चंदप्रभु पुष्प नंदनौ । कृष्णौ पुनः नेमि मुनिसुव्रतो, नीलो श्री मल्लिपाश्वों कनकत्विस: षोडशः ॥
शिल्प रत्नाकर, 12/5-6 31. द्वौ कुन्देन्दु तुषार हार धवलौ, द्वाविन्द्र नील प्रभौ। द्वौ बन्धूक समप्रभौ जिनवृषौ, द्वौ च प्रियंगु प्रभौ ॥
शेषाः षोडश जन्म मृत्यु रहिताः, सन्तप्त हेम प्रभा। स्ते सज्ज्ञान दिवाकरा: सुर नुताः, सिद्धिं प्रयच्छन्तु नः ।
प्राचीन लघुचैत्य भक्ति, श्लो. 5 32. (क) वास्तुसार प्रकरण, पृ. 82
(ख) उमास्वामी श्रावकाचार, श्लो. 100 (ग) शिल्प रत्नाकर, 11/11