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________________ 196... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन संस्कृते तुलते चैव, दुष्टस्पृष्टे परीक्षिते । हृते बिम्बे च लिंगे च, प्रतिष्ठा पुनरेव हि ।। प्रतिष्ठित होने के बाद मूर्ति का संस्कार करना पड़े, तौलनी पड़े, परीक्षा करनी पड़े या चोर चोरी करके ले जाये या दुष्ट व्यक्ति से स्पर्शित हो जाए तो मूर्ति की पुन: प्रतिष्ठा करनी चाहिए।33 हीनांग प्रतिमा का फल __ शिल्प ग्रन्थों के अनुसार प्रतिमा का कोई भी अंग न्यूनाधिक दोषों से युक्त हो तो उसके निम्न अशुभ फल प्राप्त होते हैं . प्रतिमा वक्र नासिका वाली हो तो अत्यन्त दःखदायी होती है। • प्रतिमा के अवयव छोटे हों तो क्षयकारक होती है। • प्रतिमा के नेत्र विकृत हो तो नेत्र विनाशक होती है। • प्रतिमा का मुख छोटा हो तो भोगों का नाश करती है। • प्रतिमा की कमर हीन हो तो आचार्य का नाश करती है। • प्रतिमा की जंघा हीन हो तो भाई, पुत्र एवं मित्र का विनाश करती है। • प्रतिमा का आसन हीन हो तो ऋद्धि का नाश करती है। • प्रतिमा हीन हाथ-पैर वाली हो तो धन का नाश करती है। • प्रतिमा ऊर्ध्वमुख वाली हो तो धन का क्षय करती है। • प्रतिमा अधोमुख वाली हो तो चिन्ता उत्पन्न करवाती है। • प्रतिमा की दृष्टि टेढ़ी हो तो स्वदेश का नाश करती है। • प्रतिमा की दृष्टि ऊँची-नीची हो तो वह विदेश गमन कराने वाली होती है। • प्रतिमा का आसन विषम हो तो व्याधिकारक होती है। . प्रतिमा अन्याय से प्राप्त धन से निर्मित हो तो दष्काल उत्पन्न करती है। • प्रतिमा न्यूनाधिक अंगवाली हो तो वह स्वपक्ष (प्रतिष्ठा करने वाले) एवं परपक्ष (पूजा करने वाले) उभय पक्षों को कष्ट देने वाली होती है। • प्रतिमा रौद्र रूप वाली हो तो स्थापन कर्ता का नाश करती है। • प्रतिमा अधिक अंग वाली हो तो शिल्पीकार का नाश होता है। • प्रतिमा दुर्बल अंग वाली हो तो द्रव्य का नाश होता है। • प्रतिमा कृश उदर वाली हो तो दुर्भिक्षकारक होती है। • प्रतिमा तिरछी दृष्टि वाली हो तो अपूजनीय एवं विरोधकारक होती है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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