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180... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
का सम्मान कर उससे प्रतिमा निर्माण के लिए प्रार्थना करें। तब शिल्पी अत्यन्त भावोल्लास पूर्वक जिनबिम्ब बनाने का कार्य शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ करे ।
आचार्य जयसेन प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार प्रतिमा निर्माण हेतु सोम, गुरु, शुक्र तथा मतांतर से बुधवार भी शुभ है।
नक्षत्रों में तीनों उत्तरा, पुष्य, रोहिणी, श्रवण, चित्रा, धनिष्ठा, आर्द्रा तथा मतांतर से अश्विनी, हस्त, अभिजित, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा नक्षत्र भी शुभ हैं।
तिथियों में दूज, तीज, पंचमी, सप्तमी, ग्यारस, तेरस अथवा जिस तीर्थंकर की प्रतिमा बनवानी हो उनकी गर्भ कल्याणक तिथि शुभ कही गई है। योगों में रवि पुष्य अथवा रविहस्त योग शुभ माना गया है। 10 शिला लाने हेतु जाने का शुभ मुहूर्त
प्रतिमा निर्माणकर्ता को निम्न नक्षत्रों में शिला लेने के लिए जाना चाहिएरेवती, अश्विनी, हस्त, पुष्य, श्रवण, पुनर्वसु, ज्येष्ठा, एवं मृगशिरा ।
अनुराधा, धनिष्ठा
यात्रा के लिए हस्त, पुष्य, अश्विनी एवं अनुराधा नक्षत्र भी शुभ हैं, किन्तु दक्षिण दिशा में मंगल, बुध और रविवार को न जायें।
यात्रा के लिए गमन करने से पहले नक्षत्र, लग्न एवं गोचर शुद्धि अवश्य देखनी चाहिए।
जिन प्रतिमा का निर्माण प्रारम्भ करने से पूर्व आचार्य भगवन्त एवं गुरुजनों से आशीर्वादपूर्वक अनुमति लेनी चाहिए। तत्पश्चात तीर्थंकर भगवान, स्थापनकर्ता एवं नगर इन तीनों की राशियों का मिलान करवाकर उपयुक्त दिशानिर्देश ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद ही शिला लाने हेतु जाने का समय, शिला परीक्षण एवं प्रतिमा निर्माण का समय निर्धारित करना चाहिए। यह विशेष ध्यान रहे कि गुरु या आचार्य की अनुमति एवं आशीर्वाद के बिना जिन प्रतिमा एवं मन्दिर निर्माण का कार्य नहीं करना चाहिए।
शिला की परीक्षा विधि
जिस शिला पर प्रतिमा का निर्माण करना हो उसके भीतर के दोषों को प्रकट करने हेतु एवं उसके शुद्धिकरण हेतु उस पर निम्न औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।