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जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्र विहित विधि ...179 ही घूमकर स्थिर हो जाता है। कुछ यन्त्रों में डायल, पारे अथवा अन्य द्रव (जलीय पदार्थ) पर तैरता है। खुले मैदान, रेगिस्तान, जंगल, समुद्र, पर्वतादि किसी भी जगह यह यन्त्र क्षण मात्र में सही दिशा का ज्ञान करा सकता है। प्राचीन विधि की अपेक्षा यही विधि सही, सरल एवं उपयुक्त है।
उ
उत्तर
पश्चिम
क
छाया
छाया
दक्षिण
यन्त्र को लोहे के किसी टेबल अथवा फर्नीचर पर या ऐसे स्थान पर जहाँ लोहा अथवा बिजली का तीव्र प्रवाह समीप न हो वहाँ रखें। जिन यन्त्रों में बिजली की मदद से चुम्बक निर्माण होता है जैसे- बिजली मीटर अथवा स्थायी चुम्बक वाले स्पीकर, माइक आदि के समीप भी यन्त्र को रखने से सही दिशा का ज्ञान नहीं होगा, क्योंकि सई बाहरी विद्यत या चम्बकीय प्रभाव से प्रभावित होती है। इसलिए तीव्र चुम्बक की तरफ आकर्षित होकर गलत निर्देश करेगी।
दिशा निर्धारण की दोनों विधियों में आधुनिक विधि का अधिक प्रयोग होता है। अतएव चुम्बकीय सुई के प्रयोग द्वारा दिशा निर्धारण करना श्रेयस्कर है। जिन प्रतिमा निर्माण प्रारंभ का शुभ मुहूर्त
किसी श्रावक को गृह चैत्य या साधारण चैत्य के लिए प्रतिमा का निर्माण करवाना हो तो निम्नलिखित विधि के अनुसार तदयोग्य पाषाण आदि मंगवाये अथवा स्वयं लेकर आये। उसके पश्चात प्रतिमा निर्माता प्रसन्न चित्त से शिल्पी