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166... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
17. वास्तुसार प्रकरण, पृ. 1/13-17 18. देव शिल्प, 33-34
19. पंचाशक प्रकरण, 7/13 20. (क) षोडशक प्रकरण, 6/7 (ख) द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, 5/6 21. (क) षोडशक प्रकरण, 6/8 (ख) पंचाशक प्रकरण, 7/17 22. (क) षोडशक प्रकरण, 6/9 (ख) पंचाशक प्रकरण, 7/18 23. पंचाशक प्रकरण, 7/19 24. वही, 7/20
25. पंचाशक प्रकरण, 7/21
26. वही, 7/22-23
27. (क) षोडशक प्रकरण, 6/10-11 (ख) द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, 5/7
28. पंचाशक प्रकरण, 7/25-26
29. वही, 7/27-28
30. वही, 7/29
31. वही, 7/30-31
32. वही, 7/32, 35
33. वही, 7/42
34. षोडशक प्रकरण, 6/16 35. पुव्वेसाणुत्तरं बुवहा । वास्तुसार, 1/9 उत्तरार्ध 36. पूर्व प्लवो वृद्धिकरो, धनदश्चोत्तरे तथा । याम्यां रोगप्रदो ज्ञेयो, धनहा पश्चिम प्लवः ॥
ईशान्ये प्रागुदकप्लव, स्त्वत्यन्त वृद्धिद्वोनृणाम् । अन्यदिक्षु प्लवो नेष्ट, शश्वदत्यन्त हानिदः ॥ वृहद्वास्तुमाला, श्लो. 31-32
37. पूर्वापर मुखे द्वारे प्रणालं शुभमुत्तरे । प्रासादमंडन, 2/35 पूर्वार्ध