________________
162... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 1. प्रासाद मंडन आदि शिल्प ग्रन्थों के अनुसार यदि जिन प्रासाद प्रमाण हीन
होता है तो अनपेक्षित परेशानियों का आगमन होता है। 2. यदि प्रासाद की पीठ प्रमाण हीन हो तो मन्दिर निर्माता को वाहन हानि ___ एवं दुर्घटना की आशंका होती है।
3. यदि मंदिर के रथ, उपरथ आदि अंग प्रमाण से हीन हो तो समाज को ___पीड़ादायक होता है।
4. यदि प्रासाद की जंघा प्रमाण से हीन हो तो मन्दिर निर्माता एवं समाज के ____ लिए हानिकारक है। 5. यदि मन्दिर का शिखर प्रमाण हीन (कम ऊँचा) हो तो पुत्र-पौत्र धन की __हानि एवं रोगों की उत्पत्ति होती है तथा प्रमाण से ऊँचाई में अधिक हो
तो निर्माता के उल्लास का कारक होता है। 6. यदि मन्दिर का द्वार मान हीन हो तो धन क्षय होता है। 7. यदि स्तम्भ अपद में हो तो रोगोत्पत्ति होती है।85 वास्तु पुरुष की स्थापना क्यों और कहाँ?
किसी भी वास्तु संरचना का निर्माण करने से पूर्व उसका मानचित्र बनाकर एक संकल्पना तैयार की जाती है। जिस भूखण्ड पर मन्दिर वास्तु का निर्माण करना हो वहाँ स्तम्भ, दीवार या द्वार आदि कहाँ बनायें और कहाँ नहीं? इसका निर्णय करने के लिए अनुभवी शास्त्रकारों ने वास्तु पुरुष मंडल की संयोजना दी है। उसके लिए निर्धारित भूमि पर उसका मानचित्र बनाकर उसमें वास्तु पुरुष की आकृति बनाई जाती है।
वास्तु पुरुष की आकृति इस प्रकार बनायें कि एक औंधा गिरा हुआ पुरुष जिसकी दोनों जानु एवं हाथ की कोहनियाँ वायु कोण और अग्नि कोण में आयें तथा चरण नैऋत्य कोण में और मस्तक ईशान कोण से आये।
इस आकृति के मर्म स्थानों अर्थात मुख, हृदय, नाभि, मस्तक, स्तन एवं लिंग के स्थान पर दीवार, स्तम्भ या द्वार नहीं बनाना चाहिए।
वास्तु पुरुष में स्थित देवताओं को यथायोग्य नैवेद्य अर्पण कर उन्हें सन्तुष्ट रखना चाहिए।
__ जैनेतर पुराणों में वास्तु पुरुष की उत्पत्ति महादेव के पसीने की बूंद से बताई जाती है तथा उसकी शान्ति के लिए उस पर स्थित देवताओं को विधि पूर्वक बलि देने का विधान किया गया है।