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146... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
नाम इस प्रकार हैं
1. वैराज्य 2. नन्दन 3. सिंह 4. श्रीनन्दन 5. मन्दर 6. मलय 7. विमान 8. सुविशाल 9. त्रैलोक्य भूषण 10. माहेन्द्र 11. रत्नशीर्ष 12. शतश्रृंग 13. भूधर 14. भुवन मंडल 15. त्रैलोक्य विजय 16. पृथ्वी वल्लभ 17. महीधर 18. कैलाश 19. नवमंगल 20 गंध मादन 21. सर्वांगसुन्दर 22. विजयानन्द 23. सर्वांगतिलक 24. महाभोग 25. मेरू।
उक्त 25 प्रकार के प्रासादों में कौनसा, किन देव-देवियों के लिए निर्मित करना चाहिए, उसकी सारणी निम्नोक्त हैप्रासाद नाम देव
फल वैराज्य सर्व देवों के लिए सिंह पार्वती
धन एवं पुत्र लाभ माहेन्द्र
सर्व देवों के लिए राज्य लाभ शतश्रृंग ईश्वर
शुभ कैलाश शंकर
शुभ महाभोग सर्व देवों के लिए | सर्व कार्य सिद्धि महादेव सर्व देवों के लिए
मन्दिर निर्माता यह ध्यान रखें कि वह मूलनायक देवों के अनुरूप ही मन्दिर का निर्माण करवाये। यदि तद्प सामर्थ्य न हो तो लघु आकार में प्रासाद बनवाये किन्तु यद्वा-तद्वा निर्माण न करें। शास्त्र के अनुरूप निर्माण करने से निर्माण कर्ता एवं पूजक दोनों के लिए कल्याण कारक होता है।
इन प्रासादों में शिखर सज्जा, श्रृंग संख्या, तल विभाग आदि कितने और कैसे होते हैं? इस सम्बन्धी स्पष्ट वर्णन प्रासाद मंडन के पाँचवें अधिकार में निरूपित है।60 . द्वितीय विभाग- शिल्प ग्रन्थों के अनुसार नागर जाति के प्रासादों में केसरी आदि पच्चीस प्रासाद भी प्रमुख माने जाते हैं। ये प्रदक्षिणा युक्त अथवा बिना प्रदक्षिणा के दोनों रूपों में निर्मित किये जाते हैं। प्रासाद मंडन आदि में वर्णित इन प्रासादों के नाम आदि का विवरण इस प्रकार है
___ 1. केसरी 2. सर्वतोभद्र 3. नन्दन 4. नन्दशालिक 5. नन्दीश 6. मन्दर 7. श्रीवृक्ष 8. अमृतोद्भव 9. हिमवान 10. हेमकूट 11. कैलाश 12. पृथ्वीजय