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122... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन मण्डोवर
मण्डोवर में दो शब्दों का योग है मण्ड + ऊवर। ‘मण्ड' का अर्थ है पीठ या आसन और 'ऊवर' का अर्थ है ऊपर। इस अर्थ के अनुसार पीठ के ऊपर जो भाग बनाया जाये वह मण्डोवर कहलाता है। इस प्रकार जिनालय की दीवार मण्डोवर कही जाती है।
वस्तुत: मन्दिर के मर्यादित भू-भाग में जगती का निर्माण करते हैं, जगती पर पीठ का निर्माण किया जाता है तथा पीठ के ऊपर दीवार बनाई जाती है इस दीवार को ही मंडोवर की संज्ञा दी गई है।
पीठ, वेदिबन्ध और जंघा से मिलकर मण्डोवर की रचना होती है। मण्डोवर में तेरह थर होते हैं। उन्हें विभिन्न मतानुसार भिन्न-भिन्न भागों में बाँटा जाता है। ध्यातव्य है कि भिन्न-भिन्न नाम वाले प्रासादों के अनुसार मण्डोवर की रचना भी पृथक्-पृथक् होती है।
मण्डोवर के मान, उन्मान, गणना आदि की विस्तृत जानकारी हेतु प्रासाद मंडन एवं वास्तुसार प्रकरण का तीसरा अध्याय पढ़ना चाहिए।
मण्डोवर के कुछ नमूने निम्न प्रकार हैं
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मंडोवर
स्तम्भ
मंडप
अंतराल
.
समम-
॥
अर्ध ॥ SN मंडल
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मंडोवर
कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो-नागर जाति प्रासाद (आंशिक)