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94... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
ईशान-प
पूर्व-ब
उत्तर-स
मध्य-ज
वायव्य-ह
पश्चिम-ए
तत्पश्चात 'ॐ ह्रीँ श्रीं ऐं नमो वाग्वादिनी मम प्रश्ने अवतर अवतर' इस मन्त्र से खड़िया (सफेद चोक) को 108 बार अभिमन्त्रित कर कुमारी कन्या के. हाथ में दें तथा उससे कोई भी प्रश्नाक्षर लिखवायें। लिखे गये अक्षर का कोष्ठक से मिलान करें। यदि कोई भी अक्षर मिल जाये तो उस भाग में शल्य समझें, अन्यथा भूमि को शल्य रहित समझें । "
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प्रश्नाक्षर से शल्य मिलने का संकेत एवं उसका फल कहाँ
पूर्व दिशा में डेढ़ हाथ नीचे आग्नेय में दो हाथ नीचे दक्षिण में कमर जितनी
ब आये तो कआये तो च आये तो
गहराई में
मनुष्य की हड्डी
त आये तो नैऋत्य में डेढ़ हाथ नीचे कुत्ते की हड्डी
वायव्य में चार हाथ नीचे उत्तर में कमर जितनी गहराई में
प आये तो ईशान में डेढ़ हाथ नीचे
आग्नेय-क
दक्षिण-च
नैऋत्य-त
ह आये तो स आये तो
शल्य
फल
मनुष्य की हड्डी निर्माता की मृत्यु गधे की हड्डी
राज भय
अभाव)
ए आये तो पश्चिम में दो हाथ नीचे बच्चे की हड्डी पति का परदेश
वास
कोयले
मित्र नाश
ब्राह्मण की हड्डी स्वामी का धन
जआये तो मध्य में छाती जितना गहरा
निर्माता की मृत्यु बालकों को हानि
(संतान सुख का
नाश
गाय की हड्डी स्वामी का धन
कपाल
- केश
नाश
स्वामी की मृत्यु 17
द्वितीय विधि - जिस भूमि पर मन्दिर निर्माण करना अभीष्ट है वहाँ नौ कोष्ठकों का एक चक्र निर्मित करें। उसमें पूर्वादि दिशाओं के क्रम से 'अ, क, च, ट, त, प, य, श' इन वर्गों को लिखें। मध्य में 'ह-प-य' लिखें।