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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...91 10. सर्पाकार-दर्दुराकार भूमि- सर्प एवं मेंढ़क के आकार की भूमि पर मन्दिर का निर्माण भयकारक होता है।
11. अजगराकार भूमि- अजगर के आकार की भूमि पर किया गया मन्दिर निर्माण निर्माता के लिए अत्यन्त अशुभ एवं मृत्यु कष्टदायी होता है। ___ 12. मृद्गराकार भूमि- मुद्गर के सदृश भूमि पर निर्माण करने से व्यक्ति पुरुषार्थ हीन हो जाता है।
मुद्गराकार भूमि
13. वंशाकार भूमि- बांस के आकार वाली भूमि पर मन्दिर निर्माण करने से वंश हानि का भय रहता है।
वंशाकार भूमि
आचार्य हरिभद्रसूरि के मतानुसार अयोग्य क्षेत्र में जिन मन्दिर निर्माण करवाने पर भूमि एवं परिवेश की अशुद्धता से तथा असदाचारी लोगों के प्रभाव से उस जिन मन्दिर की न तो वृद्धि होती है और न पूजा ही। धर्म हानि के भय से साधु-साध्वी भी दर्शनार्थ नहीं आते हैं। यदि आ भी जाये तो उनके आचार हानि की संभावना रहती है।
अयोग्य स्थान पर मन्दिर निर्माण से जैन शासन की निन्दा होती है। वहाँ कुत्सित लोगों के आने-जाने से कलह होता है तथा आज्ञाभंग, मिथ्यात्व और विराधना रूप भयंकर दोष लगते हैं जो संसार परिभ्रमण के मूल कारण हैं।11 भूमि परीक्षण की विधियाँ
मन्दिर निर्माण करवाने का निर्णय हो जाने के पश्चात सर्वप्रथम शुभ लक्षणवाली भूमि का चयन किया जाता है। भूमि चयन के बाद उस भूमि की विभिन्न विधियों से परीक्षा की जाती है। परीक्षा के उपरान्त ही उस जगह जिन मन्दिर बनवाना चाहिए अन्यथा विपरीत परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
वास्तुसार प्रकरण के अनुसार भूमि परीक्षण की कुछ विधियाँ उल्लेखित करेंगे, उनमें से किसी एक का अनुकरण करना चाहिए। यहाँ यह भी स्मरण रहें