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जिनमन्दिर निर्माण की शास्त्रोक्त विधि ...89 2. आयताकार भूमि- जो उत्तर-दक्षिण में लम्बी हो तथा पूर्व-पश्चिम में अपेक्षाकृत कम चौड़ी हो वह आयताकार भूमि कहलाती है। इसे चन्द्रवेधी भूमि कहते हैं। यह अत्यन्त शुभ होने प. | आयताकार भूमि | पू. से मन्दिर निर्माता के धन-धान्य और सुखसम्पत्ति में वृद्धि करती है।
3. विषम चतुर्भुज भूमिजिस भूमि की मुख भुजा से पृष्ठ भुजा किंचित् दीर्घ हो उसे विषम चतुर्भुज कहते हैं। इस भूमि पर निर्मित मन्दिर यश, सुख एवं सम्पत्ति दायक होता है।
विषम चतुर्भज
पू.
भूमि
4. ईशान वृद्धि भूमि- जिस भूमि का बढ़ाव किंचित् ईशान कोण में हो वहाँ मन्दिर का निर्माण करवाने वाले गृहस्थ के वैभव और धर्म भावनाओं का विकास होता है।
ईशान वृद्धि भूमि
ईशान वृद्धि भूमि /
ईशान वृद्धि भूमि
5. वृत्ताकार भूमि- पूरी तरह से गोलाकार भूमि पर निर्मित जिनालय सभी के लिए शुभ एवं सदाचार वर्धक होता है।
वृत्ताकार भूमि