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46... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
• सौभाग्य मुद्रा मन्त्र का सौभाग्य करें।
कृतांजलि मुद्रा से शेष सभी कार्यों को सम्पन्न करें।
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वर्तमान प्रचलित प्रतिष्ठा महोत्सव का क्रम
उपलब्ध प्रतिष्ठा कल्पों के अनुसार प्रतिष्ठा के अनन्तर 8-9 या 11 दिन का उत्सव करना चाहिए, परन्तु आजकल प्रतिष्ठा सम्बन्धी सारे उत्सव पहले फिर प्रतिष्ठा होती है। मुख्यतया अंजनशलाका - प्रतिष्ठा में मूलनायक भगवान के पाँच कल्याणक विधिवत सम्पन्न किए जाते हैं। इस विधि को वर्तमान में निम्न क्रमानुसार दस दिन में पूर्ण करते हैं
प्रथम दिन जलयात्रा, कुंभस्थापना, दीपक स्थापना और जवारारोपण की विधि सम्पन्न की जाती है।
दूसरे दिन नंद्यावर्त्त आलेखन और नंद्यावर्त्तपूजन किया जाता है। तीसरे दिन क्षेत्रपाल पूजन, दशदिक्पालों की स्थापना एवं पूजन, नवग्रहों की स्थापना एवं पूजन तथा अष्टमंगल स्थापना एवं पूजन की विधि सम्पन्न करते हैं।
चौथे दिन मुख्य रूप से सिद्धचक्र पूजन एवं तत्सम्बन्धी विधि-अनुष्ठान सम्पन्न किए जाते हैं।
पाँचवें दिन तीर्थंकर गोत्र उत्पादक बीसस्थानक पूजन किया जाता है। छठे दिन च्यवन कल्याणक विधि करते हुए उसके अन्तर्गत इन्द्र-इन्द्राणी की स्थापना, माता-पिता की स्थापना, धर्माचार्य पूजन, कलश में बिम्ब स्थापना, चौदह स्वप्न दर्शन आदि विधि-विधान किए जाते हैं।
सातवें दिन जन्म कल्याणक विधि के अन्तर्गत आत्मरक्षा, शुचिकरण, सकलीकरण, विघ्नोत्त्रासन, जलोच्छाटन, कवच करण, दिग्बंधन, सप्त धान्य वृष्टि, छप्पन दिक्कुमारी उत्सव, शक्र सिंहासन कंपन, मेरूपर्वत पर 250 अभिषेक, माता समीप जिनबिम्ब स्थापन आदि की विधियाँ की जाती हैं।
आठवें दिन पुत्र जन्म की बधाई, अठारह अभिषेक एवं नाम स्थापना आदि क्रियाएँ की जाती हैं।
नौवें दिन पाठशाला गमन, विवाह महोत्सव, कंकण बंधन, पौखण कर्म, आरती-मंगल दीपक, बिम्ब विलेपन, चंवरी बंधन, मंडप में जिनबिम्ब की स्थापना, घृत गुड़ युक्त चार दीपक की स्थापना, चार कलशों की स्थापना, बिम्ब