________________
44... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
• सिद्ध मूर्ति प्रतिष्ठा में गणधर गौतम स्वामी आदि जो भी सिद्ध हो गए । हैं उनकी प्रतिष्ठा को माना गया है।
• समवशरण की प्रतिष्ठा में वलयाकार कोड़ी के स्थापनाचार्य, पंच परमेष्ठी एवं समवशरण की प्रतिष्ठा भी अन्तर्निहित है।
• मंत्र पट्ट प्रतिष्ठा में धातु उत्कीर्ण वस्त्र से निर्मित पट्ट की प्रतिष्ठा की जाती है।
• पितृमूर्ति प्रतिष्ठा में जिन प्रासाद का निर्माण करवाने वाले, चैत्यगृह बनवाने वाले, फलक (तख्त नाम पट्ट) को स्थापित करने वाले एवं छोटा घड़ा, जिसे शिव आदि की मूर्ति पर टांगते हैं और जिसकी पेंदी के छेद से प्रति समय जल टपकता रहता है ऐसे गलछिब्बरिका से युक्त देव मूर्ति को स्थापित करने वाले पितृ की प्रतिष्ठा की जाती है।
• यतिमूर्ति प्रतिष्ठा में आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि की मूर्ति अथवा स्तूप की प्रतिष्ठा की जाती है।
• ग्रह प्रतिष्ठा में सूर्य, चन्द्र, ग्रह, तारा, नक्षत्र आदि की प्रतिष्ठा की . जाती है।
• चतुर्निकाय देव प्रतिष्ठा में दिक्पाल, इन्द्र आदि सभी प्रकार के देव, शासन देवता, यक्ष आदि की प्रतिष्ठा की जाती है।
• गृह प्रतिष्ठा में भित्ति, स्तम्भ, देहली, द्वार आदि का भी समावेश होता है।
• वापी आदि जलाशयों की प्रतिष्ठा में बावड़ी, कुआँ, तालाब, झरना, तड़ागिका, विवरिका आदि धर्म कार्यों में उपयोगी जलाशयों को सम्मिलित किया गया है।
• वृक्ष प्रतिष्ठा में उद्यान, वन देवता आदि की प्रतिष्ठा की जाती है।
• अट्टालिक आदि भवन प्रतिष्ठा में शरीर के दाह-संस्कार आदि की भूमि पर चरण प्रतिष्ठा आदि भी समाहित है।
• दुर्ग प्रतिष्ठा में मुख्य मार्ग, यंत्र आदि की प्रतिष्ठा की जाती है।
• भूमि आदि की प्रतिष्ठा विधि में पूजा भूमि, संवेश भूमि, आसन भूमि, विहार भूमि, निधि भूमि आदि भूमियों एवं जल, अग्नि, चूल्हा, बैलगाड़ी, वस्त्र, आभूषण, माला, गंध, ताम्बूल, शय्या, गज-अश्व आदि की अंबाड़ी,