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प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ... 39
नारियों की व्यवस्था कर देनी चाहिए। निर्वाण कलिका आदि ग्रन्थों में औषधि चूर्ण और पौंखण आदि करने वाली सन्नारियाँ कैसी हो, इसका विस्तृत वर्णन अध्याय-2 में किया जा चुका है।
9-10. प्रतिष्ठाचार्य एवं स्नात्रकार का स्वरूप- इन कर्तव्यों का विस्तृत वर्णन अध्याय-2 में कर चुके हैं।
11. अमारी घोषणा - प्रतिष्ठा उत्सव के दरम्यान 'हिंसा निषेध की उद्घोषणा करवानी चाहिए । इस पुण्य प्रसंग पर प्राणी मात्र की रक्षा के लिए अभयदान देना या दिलवाना भी प्रतिष्ठा का एक मुख्य अंग है।
यदि राज्य शासक जैन धर्म का अनुयायी हो तो उसके माध्यम से सम्पूर्ण देश में 'अमारी' की घोषणा करवानी चाहिए, यदि ऐसा न बन सके तो जहाँ प्रतिष्ठा हो उस गाँव या नगर में अमारी घोषणा करवाये । कदाचित उत्सव के सभी दिनों में हिंसा को नहीं रोका जा सके तो प्रतिष्ठा के दिन तो राजा, राजाधिकारी या ग्रामाधिपति से प्रार्थना कर हिंसा रोकनी ही चाहिए। किसी भी उपाय से देश, मंडल या नगर में एक दिन के लिए भी अमारी की घोषणा नहीं करवायी जा सके तो जिस संघ में प्रतिष्ठा उत्सव चल रहा हो उतने दिन के लिए उस समाज में आरम्भ निषेध की घोषणा तो करवानी ही चाहिए।
आरम्भ जन्य प्रवृत्तियों को रोकने से प्रत्येक जन उत्सव में भाग ले सकते हैं तथा सांसारिक कार्यों के निमित्त हिंसा प्रवृत्ति भी कम होगी ।
अमारी घोषणा से अमुक दिनों तक मूक पशुओं की करुण आहें न निकलने से देश का वायुमण्डल शुद्ध बनता है, अहिंसात्मक विचारों के प्रसरण से जनमानस की प्रसन्नता में अभिवृद्धि होती है जिससे उनके विपुल पुण्य का संचय होता है। कदाचित यह उद्घोषणा सुनकर तस्कर वृत्ति एवं नृशंस हत्याएँ करने वालों में भी अद्भुत परिवर्तन आ सकता है। इस तरह अनेक दृष्टियों से अमारी घोषणा लाभदायी है।
12. प्रतिष्ठा योग्य सामग्री- अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव को सम्पन्न करने के लिए तद्योग्य आवश्यक सामग्री पहले से ही एकत्रित कर लेनी चाहिए, जिससे महोत्सव के दरम्यान भागमभाग न करनी पड़े।
यदि प्रतिष्ठा सामग्री के सम्बन्ध में ऐतिहासिक अनुशीलन किया जाए तो ज्ञात होता है कि इस विषय में प्रतिष्ठा कल्पकारों के भिन्न-भिन्न मत हैं । निर्वाण