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374... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... की सामग्री भी यथावत रखनी चाहिए। मन्दिर में स्थान आदि की कमी होने पर दूसरा उसे हटाए पहले उससे हमें उसे हटा देना चाहिए।
शंका- अभिषेक की क्रिया समापन की ओर हो इधर हमें पहुँचते-पहुँचते विलम्ब हो जाए तो हमें पुनः अभिषेक करना चाहिए या भावों से ही संतोष मान लेना चाहिए?
समाधान- यदि किसी का नित्य प्रक्षाल का नियम हो और किसी कारण विशेष से देरी हो जाए किन्तु अंगलुंछन चल रहा हो तो फिर छोटी प्रतिमाजी की प्रक्षाल करके संतोष कर लेना चाहिए। यदि अभिषेक क्रिया चल रही हो तो अवश्य कर लेना चाहिए परन्तु तकरार आदि करके प्रक्षाल नहीं करना चाहिए। पुण्य लाभ तो भावों से ही मिल जाता है। व्यवस्थापकों को भी आने वाले पूजार्थी के भाव जगत को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए। व्यवस्था बिगड़े ऐसा भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए और किसी के मन में खेद भाव उत्पन्न हो ऐसा भी कार्य नहीं करना चाहिए। पूजार्थी को भी अखेद एवं अद्वेष भाव के साथ शेष क्रिया करनी चाहिए।
शंका- पूजा के वस्त्र पहनने नहीं आते हो तो कुर्ता-पायजामा में पूजा कर सकते हैं या नहीं? पूजा न करने से तो कुर्ता पायजामा में करना ज्यादा हितकर नहीं है?
समाधान- शास्त्रों में पूजा हेतु बिना सिले हुए दो अखंड वस्त्रों का विधान है। इसी कारण पूजा में धोती और उत्तरासन (दुपट्टा) पहना जाता है। इस नियम के द्वारा पाँच अभिगम में से एक उत्तरासंग का पालन भी हो जाता है। जिसके मन में पूजा करने के उत्कृष्ट भाव होंगे वह व्यक्ति उसके नियमों के प्रति भी उतना ही श्रद्धान्वित होगा। जहाँ चाह होती है वहाँ राह भी मिल ही जाती है। चाह हो तो व्यक्ति एक ही दिन में पूजा के वस्त्र पहनना सीख सकता है। कई लोग इसलिए कुर्ता-पायजामा की बात करते हैं क्योंकि उन्हें धोती दुपट्टा पहन कर मंदिर जाने में शर्म आती है। परन्तु परमात्म भक्ति में कैसी शर्म? एक-दो लोगों ने मन मुताबिक ड्रेस पहनना शुरू किया तो उन्हें देखकर अन्य लोग भी वैसे वस्त्रों का प्रयोग शुरू कर सकते हैं। इससे मूल परिधान का शनै:-शनैः लोप ही हो जाएगा। व्यवहार क्षेत्र में व्यक्ति को जहाँ जाना होता है वह वहाँ के Dress Code का बराबर पालन करता है। उसी तरह पूजा की Dress Code का