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श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...373 आजकल Sms, Twitter or e-mail के जरिए त्वरित सूचना प्रसारण किया जा सकता है। अतः आवश्यकता अनुसार ही इनमें खर्च करना चाहिए।
पंच महाव्रतधारी साधुओं का स्थान यति आदि साधकों से ऊपर होता है। संभव है कि यतियों का साधना पक्ष साधुओं से मजबूत हो तो भी तप त्यागसंयम एवं महाव्रतों की अपेक्षा साधु का स्थान उनसे बड़ा है अतः दोनों की फोटो समकक्ष नहीं होनी चाहिए।
शंका- सिद्धचक्रजी, बीशस्थानकजी आदि के आले के ऊपर आगम पेटी रख सकते हैं?
समाधान- पेटी में यदि आगम ग्रन्थ रखे हुए हो तो उन्हें सिद्धचक्रजी आदि के ऊपर रख सकते हैं क्योंकि जिनवाणी को जिनेश्वर के समान ही पूज्य माना गया है। यदि उस पेटी में ज्ञान का पैसा आदि रखा जाता है तो वह सिद्धचक्रजी आदि के ऊपर नहीं रह सकती।
शंका- अक्षत पूजा करते समय दर्शन - ज्ञान - चारित्र का ढ़ेरी के स्थान पर उनके चित्रों का आलेखन कर सकते हैं या नहीं?
समाधान- जिस प्रकार हम स्वस्तिक, नंद्यावर्त्त आदि विविध आकारों में बनाते हैं उसी तरह दर्शन, ज्ञान, चारित्र की आकृतियाँ भी बना सकते हैं। कई बार पत्थर, शंख पुष्प आदि वस्तुओं में देव, गुरु आदि की स्थापना की जाती है। इसी तरह तीन ढेरियाँ भी रत्नत्रयी का प्रतीक स्वरूप है। तीन ढेरियाँ बनाना सरलतम मार्ग है । कोई यदि उनके चित्र बनाता है तो उसमें कोई दोष नहीं है। शंका- हम चैत्यवंदन कर रहे हों और कोई यदि हमारे द्वारा बनाया गया स्वस्तिक आदि हटा दे तो क्या करना चाहिए?
समाधान- स्वस्तिक आदि बनाना द्रव्य क्रिया का एक अंग है। यह क्रिया करते समय हमारी भावना द्रव्य समर्पित करने एवं त्याग करने की होती है। एक बार समर्पित करने के बाद हमारा उससे कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता। तीसरी निसीहि के उच्चारण के बाद द्रव्यपूजा से सम्बन्ध Cut OFF हो जाता है अत: भावपूजा करते हुए द्रव्यपूजा के सम्बन्ध में किसी प्रकार के विकल्प, चिंतन आदि नहीं करना चाहिए। यदि कोई हमारा स्वस्तिक आदि मिटा दे तो उससे कलह-क्लेश करने अथवा इस विषय में खेद करने से उल्टा कर्म बंधन होता है। शास्त्रों में कोई ऐसा विधान नहीं है कि भाव क्रिया करते समय द्रव्य क्रिया