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श्रुत सागर से निकले समाधान के मोती ...375 पालन भी आवश्यक है।
यदि कोई विशेष परिस्थिति हो अथवा पूजा की ड्रेस कहीं से उपलब्ध नहीं हो पा रही हो तो कुछ समय के लिए कुर्ता-पायजामा का प्रयोग भी विवेक पूर्वक करना चाहिए एवं शीघ्रातिशीघ्र पूजा के वस्त्र मंगवाने का प्रयत्न करना चाहिए। हो सके तो कुर्ते के स्थान पर दुपट्टा पहनना चाहिए।
शंका- मन्दिरों का निर्माण कैसे क्षेत्र में करना चाहिए?
समाधान- मन्दिर निर्माण हेतु शुद्ध, निर्मल एवं शांत वातावरण वाले स्थान का चुनाव करना चाहिए। इसमें मुख्यरूप से यह ध्यान रखना चाहिए कि आस-पास में भक्तिनिष्ठ श्रावकों का निवास हो तथा आने-जाने वालों को सुविधा हो। आजकल बढ़ती आबादी एवं महंगाई के कारण कई बार Outer शांत स्थानों पर मंदिर बना दिए जाते हैं। कई स्थानों पर तो जगह की सुविधा होने पर Garden तालाब आदि भी बनाए जाते हैं परन्तु ऐसे स्थानों पर लोग दर्शन करने कम और पिकनिक मनाने अधिक आते हैं, वह भी छुट्टी के दिन। शेष दिन वहाँ के सभी कार्य मात्र पुजारी के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है।
आजकल मंदिरों का निर्माण तो बढ़ रहा है किन्तु मंदिर संभालने वालों की संख्या घट रही है। ऐसी स्थिति में जहाँ पहले से जिनालय हो वहाँ नूतन जिनालय का निर्माण करवाने से पूर्व दीर्घदृष्टि से विचार करना चाहिए। यदि पुजारियों के भरोसे सभी क्रियाएँ छोड़नी हो तो मंदिर निर्माण नहीं करवाना ज्यादा उचित प्रतीत होता है। __ शंका- समय की अल्पता अथवा अपनी शान-शौकत दिखाने हेतु पुजारियों के द्वारा पूजा की सब तैयारी करवाना कहाँ तक उचित है?
. समाधान- आजकल अधिकांश स्थानों पर पूजा के पूर्व की सम्पूर्ण तैयारियाँ पुजारी के द्वारा की जाती है, ताकि सेठ श्रावक लोग आए और फटाफट पूजा का काम निपटा सके। परन्तु अपनी समय बचत के बारे में सोचने से पूर्व क्या कभी यह जायजा लेने का प्रयत्न किया कि पुजारी किस प्रकार काम करता है? परमात्मा आपके आराध्य हैं। आप उनके विषय में बहुत कुछ जानते हैं, फिर भी आपमें श्रद्धा का वह वेग नहीं तो अजैन पुजारी के मन में आशातना रहित परमात्मा भक्ति के भाव कैसे हो सकते हैं? वह तो जैसे-तैसे भगवान को