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________________ सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन ...341 चढ़ावे की रकम चढ़ावा बोलने के साथ चुका देनी चाहिए उसके बाद ली गई बोली का लाभ लेना चाहिए ऐसा वर्णन भी कई स्थानों पर मिलता है। अत: यह स्पष्ट है कि चढ़ावे का रुपया शीघ्रातिशीघ्र चुका देना चाहिए। वर्षों तक चढ़ावे की रकम नहीं चुकाने पर श्रावक महादोष के भागी बनते हैं। देरी से चढ़ावे की रकम चुकाने पर उसे ब्याज सहित चुकाना चाहिए। शंका- देवद्रव्य की वृद्धि अधिक करनी चाहिए अथवा साधारण द्रव्य की? समाधान- संबोध सप्तति (पृ. 52) के अनुसार "देवद्रव्यवत् साधारणद्रव्यमपि वर्धनीयमेव, देवद्रव्य साधारणद्रव्योर्हि वर्धनादौतुल्यत्वश्रुतैः।" देवद्रव्य जैसे साधारण द्रव्य की भी वृद्धि करना चाहिए क्योंकि देवद्रव्य और साधारण द्रव्य को बढ़ाने में शास्त्रों में तुल्यत्व श्रुति है अर्थात दोनों की वृद्धि में सफलता है। श्राद्धप्रकरण,पृ. 62 (वापी से प्रकाशित) के अनुसार "धर्मव्ययश्च मुख्यवृत्या साधारण एव क्रियते, यथा-यथा विशेष विलोक्यमानं धर्मस्थाने तदुपयोगः स्यात्। सप्तक्षेत्र्यां हि यत्सीदत् क्षेत्रं स्यात्तदुपष्टम्भे भूयान् लाभो दृश्यते।" मुख्य रूप से धन का व्यय साधारण खाते में ही करना चाहिए क्योंकि जैसे-जैसे विशेष (द्रव्य) देखने में आए वैसे-वैसे धर्म स्थानों में उसका उपयोग हो सकता है। सात क्षेत्रों में जो क्षेत्र निर्बल हो उसे पुष्ट करने में विशेष लाभ है। धर्मसंग्रह (पृ. 145) के अनुसार मुख्यतया धर्म के क्षेत्र में धन का व्यय साधारण खाते में ही करना चाहिए क्योंकि उसका उपयोग सभी धर्म कार्यों में होता है। आचार्य कीर्तियशसूरिजी के अनुसार जब भी आवश्यकता हो तो नीचे के क्षेत्र का द्रव्य ऊपर के क्षेत्र में जा सकता है परन्तु नीचे के क्षेत्र में ऊपर के क्षेत्र का पैसा नहीं आ सकता। अत: देवद्रव्य के साथ-साथ साधारण खाते में यथासंभव सांगोपांग वृद्धि करनी चाहिए। शंका- देवद्रव्य रक्षा की जवाबदारी किसकी है? समाधान- साहू उविक्खमणो अणंत संसारिओ भणिओ। (अभिधान राजेन्द्र कोश 3/1284)
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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