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340... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
समाधान- इन्द्रमाल आदि के चढ़ावों की परम्परा प्राचीन है। इसके उल्लेख कई शास्त्रों में देखने को मिलते हैं । ऐतिहासिक प्रबंध, चरित्र, पट्टावली आदि में इसके उल्लेख प्राप्त होते हैं।
कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य की निश्रा में कुमारपाल महाराजा ने छरी यात्रा संघ के प्रसंग पर शत्रुंजय, गिरनार एवं प्रभास पाटण में उछामणी (चढ़ावे) के द्वारा तीन संघ माला गृहीत कर पहनने - पहनाने की क्रिया की । यह बारहवींतेरहवीं सदी की घटना है। उस समय में यह प्रथा थी और यह राशि तीर्थ के देवद्रव्य खाते में जमा की गई थी।
युगप्रधान गुर्वावाली में चौदहवीं सदी में आयोजित छ : री पालित संघों की तीर्थ यात्रा प्रसंगों में संघ माला के चढ़ावे एवं उस राशि का देवद्रव्य खाते में जमा होने का उल्लेख प्राप्त होता है। श्राद्धविधिप्रकरण, धर्मसंग्रह आदि ग्रन्थों में भी इस बात की पुष्टि की गई है।
उदाहरण - वि.सं. 1329 में पालनपुर से एक संघ निकला था जिसकी इन्द्रमाला से तारंगा में 3000 द्रम्म, पुनः खंभात तीर्थ में 5000 द्रम्म, शत्रुंजय तीर्थ पहुँचने पर 1700 द्रम्म तथा गिरनार के ऊपर 7097 द्रम्म की आवक हुई जो कि गुप्त भंडार खाते में गई ।
विविध चढ़ावों से हुई देवद्रव्य की आवक का वर्णन करते हुए कहा गया है
"शत्रुंजये देवभाण्डागारे उद्देशात: सहस्त्र 20 उज्जयन्ते सहस्त्र 17 संजाता'' शत्रुंजय के देवभंडार में विविध लाभों से 20 हजार द्रम्म और गिरनार में 17 हजार द्रम्म की आवक हुई।
वि.सं. 1380 में दिल्ली से आए संघ ने शत्रुंजय तीर्थ के ऊपर प्रतिष्ठा माला, इन्द्रपद, कलश स्थापना ध्वजा आदि विविध चढ़ावों के द्वारा 50 हजार द्रम्म की राशि आदिनाथ दादा के देवद्रव्य भंडार में जमा करवाई।
इसी प्रकार वि.सं. 1381 में भीलडी से शत्रुंजय तीर्थ पर आए संघ के द्वारा संघ माला के चढ़ावे निमित्त 15 हजार द्रम्म की आवक देवद्रव्य खाते में हुई। अतः इन्द्रमाल आदि की परम्परा प्राचीन एवं शास्त्र विहित है। शंका- चढ़ावे के रूपये कितने समय में देने चाहिए ?
समाधान- पेथडशाह ने चढावे की रकम देने के बाद पानी पिया था।