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342... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
देवद्रव्य की सुरक्षा करने की मूल जवाबदारी श्रावक की ही होती है। परंतु यदि साधु भी देवद्रव्य का विनाश होते देख उपेक्षा करे तो वह भी अनंत संसार का परिभ्रमण बढ़ा देता है अतः श्रावक एवं साधु दोनों को देवद्रव्य की सुरक्षा करनी चाहिए।
शंका- देवद्रव्य की उपेक्षा या रक्षा करने के परिणाम क्या आते हैं? उत्तर- पूर्वाचार्यों के अनुसार
जिणपवयणवुड्डिकर, पभावगं नाणदंसणगुणाणं । रक्खंतो जिणदव्वं, परित्त संसारिओ होई।। जिणपवयण वुड्विकरं, पभावगं नाणदंसणगुणाणं । भक्खंतो जिणदव्वं, : अणंतसंसारिओ होई ।। जिणपवयण वुड्डिकर, पभावगं नाणदंसण गुणाणं । वढंतो जिणदव्वं, तित्थयरत्तं लहइ जीवो।।
संबोध सत्तरी प्रकरण, गा. 101-103 जिन प्रवचन की वृद्धि करने वाले, ज्ञान दर्शन गुणों के प्रभावक ऐसे जिनद्रव्य अर्थात देवद्रव्य की रक्षा करने से जीव परित संसारी होते हैं अर्थात उनका संसार परिमित हो जाता है तथा जो देवद्रव्य में वृद्धि करता है वह तीर्थंकर नाम कर्म का भी उपार्जन करता है। इसके विपरीत जो जिनद्रव्य का भक्षण करता है वह अनंत संसार के परिभ्रमण को बढ़ाता है।
देवद्रव्य की रक्षा एवं वर्धन करने से तीर्थंकर पद की प्राप्ति की बात दर्शाकर आगमकारों ने देवद्रव्य की महत्ता को उजागर किया है अत: देवद्रव्य के रक्षण आदि के प्रति सभी को अत्यंत जागरूक रहना चाहिए।
शंका- जिनप्रतिमा के निमित्त आया द्रव्य जीर्णोद्धार में प्रयुक्त हो सकता है?
समाधान- जिनपूजा निमित्त दिया गया द्रव्य वर्तमान में जिनपूजा के साथ जीर्णोद्धार हेतु भी प्रयुक्त होता है। यदि जिनप्रतिमा भरवाने की राशि हो तो जीर्णोद्धार हेतु उपयोग में नहीं लेनी चाहिए। परिस्थिति विशेष में उसको भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि देवद्रव्य से जिनमंदिर जीर्णोद्धार हो सकता है। वर्तमान में जिनप्रतिमा और जिनमंदिर को लगभग एक ही खाते में रखा जाता है एवं तत् सम्बन्धी द्रव्य को मंदिर निर्माण, जीर्णोद्धार, जिनप्रतिमा पूजा, बिम्ब संरक्षण एवं अन्य भक्ति कृत्यों में प्रयुक्त किया जाता है।