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306... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
इस प्रकरण के अन्तर्गत विघ्नोपशमनी, अभ्युदय-प्रसाधनी और निर्वाण साधनी इन तीन प्रकार की पूजाओं का वर्णन करते हुए उन्हें नाम के अनुसार फल देने वाली बताया है। पूजा करने वाला श्रावक पहली विघ्नोपशमनी पूजा में सुन्दर पुष्पादि देकर सेवा करता है और दूसरी अभ्युदयप्रसाधनी पूजा में पुष्पादि स्वयं तो लाता ही है किन्तु दूसरे से भी अच्छे-अच्छे पदार्थ मंगवाता है। अंतिम निर्वाण साधनी पूजा करते हुए सम्पूर्ण गुणों में उत्तम ब्रह्मचर्य पालन में तत्पर होकर सकल सृष्टि के सुन्दर पदार्थों का मन से सम्पादन करता है।59 ___पंचाशक प्रकरण में पूजा सम्बन्धी विविध चर्चाओं का उल्लेख करते हुए पूजा निमित्त स्नान आदि हिंसक प्रवृत्ति भी कैसे लाभकारी हो सकती है तथा पूजा निमित्त कैसे संसाधनों का प्रयोग करना आदि के विषय में कहते हैं कि विधिपूर्वक की जाने वाली जिनपूजा उभयलोक का हित करने वाली है अत: पूजा हेतु पवित्र होकर, विशुद्ध पुष्पादि से विधिपूर्वक सारगर्भित स्तुति स्तोत्रों द्वारा जिनपूजा करनी चाहिए। स्नान आदि के द्वारा द्रव्यशुद्धि तथा अवस्थोचित्त विशुद्धवृत्ति से भावशुद्धि करनी चाहिए। जयणा पूर्वक किए गए स्नानादि आरंभमय कार्य भी शुभभाव का हेतु होने से लाभसंचार में सहायक बनते हैं। पूजा कार्य को हिंसक मानकर उसकी निन्दा करने वाले को भवान्तर में बोधि दुर्लभ हो जाती है।60
श्रेष्ठ पूजा संसाधनों के प्रयोग से भावों में भी श्रेष्ठता आती है तथा उत्तम उपयोग पूजा विधि हेतु ही हो सकता है अत: पूजक को अन्य चेष्टाओं से मुक्त होकर अपने वैभव के अनुरूप श्रेष्ठ जिनपूजा करना चाहिए। पूजा में आशातना से बचने हेतु वस्त्र से नासिका को बांधकर, मन में समाधि रहे उस प्रकार के विधान से पूजा करनी चाहिए तथा अपने शरीर में खुजली आदि उस समय नहीं करनी चाहिए। ___पूजा में उपयोगी साधनों की चर्चा करते हुए इसी में आचार्य हरिभद्रसूरि ने सुगंधी धूप, सर्वौषधि, सुगन्धित जल आदि विचित्र पदार्थों, सुगंधी विलेपनों, श्रेष्ठ पुष्पमालाओं, नैवेद्य, दीपक, सिद्धार्थक, दधि, अक्षत, गोरोचन आदि में से जो प्राप्त हो उनसे अथवा सुवर्ण आभूषण, मौक्तिक माला, रत्न माला आदि से जिनपूजा करने का उल्लेख किया है।61 योगबिन्दु एवं समरादित्य कथा में भी