________________
252... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... पूजा करने से श्रावक का जीवन भी परमात्म भक्ति एवं अध्यात्म की सौरभ से परिपूर्ण बनता है। मध्याह्नकालीन पूजा के सारभूत तथ्य
प्रात:कालीन चर्या पूर्ण करने के पश्चात किन्तु भोजन करने से पूर्व श्रावक के लिए मध्याह्नकालीन पूजा के रूप में अष्टप्रकारी पूजा का सूचन ग्रंथकारों ने . किया है। त्रिकाल पूजाओं में मध्याह्न पूजा का सविशेष महत्त्व है। यदि हम अपनी भोजन चर्या का निरीक्षण करें तो हमें ज्ञात होगा कि दोपहर के समय मीठा-नमकीन आदि से युक्त गरिष्ठ भोजन बनाया जाता है। क्योंकि उस समय हम उसे पचाने की क्षमता रखते हैं एवं उस समय तक उन द्रव्यों का निर्माण भी हो सकता है। वैसे ही त्रिकाल पूजाओं में मध्याह्न पूजा अधिक द्रव्य सामग्री एवं अनेक विधि क्रियाओं से युक्त होती है। इसके पीछे कई सारभूत कारण भी हैं।
मध्याह्न पूजा अर्थात अष्टप्रकारी पूजा। पूर्व काल में श्रावकों की जीवनचर्या संतोषपूर्ण होती थी। उनकी एक ही भावना रहती थी कि नैतिकता के द्वारा इतने द्रव्य का अर्जन कर लिया जाए कि गृहस्थी का संचालन सम्यक प्रकार से हो सके तथा आए हुए अतिथि एवं संतजनों की भक्ति हो सके। इससे अधिक लालसा एक श्रावक के जीवन में नहीं होती थी। इस कारण श्रावक अपना अधिकाधिक समय परमात्म भक्ति में व्यतीत कर सकते थे।
मध्याह्न पूजा का समय है दोपहर बारह बजे का। उस समय तक सूर्य की किरणों का प्रभाव सम्पूर्ण वातावरण में फैल जाता है। उसके प्रकाश से सूक्ष्म जीव भी दृष्टिगम्य होने लगते हैं। कृत्रिम रोशनी या Electric Light आदि का प्रयोग जैन मन्दिरों में वर्जित है तथा प्रात:कालीन प्रकाश इतना तीव्र नहीं होता कि उसमें सूक्ष्म जीव दृष्टिगोचर हो सके।
- प्राचीन काल में नैवेद्य आदि के रूप में पूर्ण भोजन थाल चढ़ाया जाता था। पूर्ण भोजन सामग्री की तैयारी मध्याह्न काल में ही संभव है। मध्याह्न काल तक श्रावकों को भी शुद्ध एवं उत्तम द्रव्यों की प्राप्ति हेतु समय मिल जाता था। इसी के साथ आवश्यक कार्यों से निवृत्त होने के बाद निश्चिंत होकर प्रभु पूजा में मन को जोड़ा जा सकता है।
मध्याह्न काल में जलपूजा से लेकर फलपूजा तक की अष्टप्रकारी पूजा के