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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...251
प्रातः कालीन पूजा वासक्षेप से ही क्यों?
प्रात:काल में वासक्षेप पूजा का विधान कई विशेष रहस्यों को समाहित किए हुए हैं। प्रात:काल यह दिन की शुरूआत होती है और वह परमात्म भक्ति जैसे शुभ कार्य से प्रारंभ हो तो पूरा दिन आनंदपूर्वक बीतता है।
प्रातः वेला में सूर्योदय होने के पश्चात भी सूर्य का प्रकाश इतना तीव्र नहीं होता कि मंदिर के भीतर पूर्ण उजाला हो सके या वातावरण में रहे सूक्ष्म जीवों की रक्षा की जा सके अतः जीव हिंसा की संभावना रहती है। प्रात: काल में श्रावक को अन्य भी कई पारिवारिक-सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करना होता है। अष्टप्रकारी पूजा यदि विधिवत करनी हो तो उसमें अधिक समय चाहिए, जबकि प्रात:काल में अन्य कार्यों को सम्पन्न करने की बुद्धि भी रहती है। अतः श्रावक पूर्ण निश्चिंतता के साथ अष्टप्रकारी पूजा सम्पन्न नहीं कर सकता। जिनपूजा हेतु शुद्ध एवं ताजे द्रव्य प्रात: काल में प्राप्त होना कठिन होता है । अतः दोषयुक्त द्रव्य प्रयुक्त होने की संभावना अधिक रहती है। प्रातः काल में स्नानादि कार्य करने में जल्दी होने से अविवेक की संभावना रहती है। मंदिर की साफसफाई का भी कार्य श्रावक को स्वयं करना चाहिए। यदि श्रावक पूजा के वस्त्रों में आएगा तो साफ-सफाई करते हुए पसीना आदि से शारीरिक अशुद्धि की भी संभावना रहती है। पूर्व काल में नित्य अभिषेक का विधान नहीं था अतः श्रावक वासचूर्ण द्वारा ही जिनपूजा करते थे । .
इसी के साथ एक कारण यह भी हो सकता है कि प्रातः काल में अष्टप्रकारी पूजा जल्दी करना संभव नहीं होता है। ऐसे में श्रावक बिना परमात्मा की पूजा किए अपने दिनचर्या की शुरूआत कैसे करें ? इस हेतु शुद्ध वस्त्रों को धारण कर श्रावक वासक्षेप पूजा द्वारा अपना भक्तिभाव परमात्मा के समक्ष प्रदर्शित करता है। जिनबिम्ब के शुभ परमाणुओं का ग्रहण कर अपने आप को शुभ भावधारा में प्रवाहित करता है।
यद्यपि उत्कृष्ट रूप से श्रावक को नित्य एकासण तप करना चाहिए किन्तु शक्ति नहीं होने पर सामर्थ्य अनुसार पच्चक्खाण कर सकते हैं। गृहस्थ दिन की मंगलकारी शुरूआत करने हेतु परमात्मा की वासक्षेप पूजा करता है । जिस प्रकार वासचूर्ण एक सुगंधित द्रव्य है एवं उसकी सुवास से सम्पूर्ण वातावरण निर्मल, मनोरम एवं आह्लादजनक बन जाता है उसी तरह परमात्मा की वासचूर्ण के द्वारा