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भावे भावना भाविए ... 187
शास्त्रीय संगीत की विविध रागों के प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व परिचित है। प्रत्येक राग के विशिष्ट अधिनायक देवी-देवता आदि होते हैं एवं उन रागों की विधिवत साधना से तज्जनित देवी-देवताओं का सान्निध्य प्राप्त होता है। संगीत के विविध स्वर, विविध काल, मौसम आदि के सूचक हैं। जैसे कि दीपक राग को गाने से दीपक स्वयमेव प्रकट हो जाता है और वातावरण में गर्मी बढ़ जाती है, वहीं मेघ मल्हार के गान से बादल मंडराने लगते है और मूसलाधार वर्षा होने लगती है। अरिहंत परमात्मा द्वारा दिए जाने वाले उपदेश में प्रयुक्त मालकोश राग द्वेष-आक्रोश की परम्परा को दूर कर मैत्री भाव की स्थापना में सहायक बनता है।
परमात्मा के दरबार में भी जब स्तवन का गान किया जाता है तो विशिष्ट भक्ति परमाणु सर्वत्र वातावरण में प्रसारित हो जाते है। सूत्रों की भाषा संस्कृतप्राकृत आदि होने से मन का उतना जुड़ाव हो या न हो परन्तु स्तवन की भाषा को जानने एवं समझने के कारण उसमें भावों का जुड़ाव अवश्यमेव हो जाता है। परमात्मा के प्रति जागृत हुए प्रेम को अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम साधन संगीत है।
इतिहास के पन्नों में भी हमें इसके कई उदाहरण प्राप्त होते हैं। रावण ने प्रभु भक्ति करते-करते तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन किया था। मीरा, कबीर, तुलसी आदि की परमात्म भक्ति एवं रचनाएँ सर्वत्र प्रसिद्ध हैं।
यशोविजयजी, आनंदघनजी और देवचंद्रजी महाराज द्वारा कृत रचनाओं में परमात्मा से प्रीति की विशिष्ट अभिव्यक्ति होती है।
माँ जब बच्चे को लोरी सुनाती है तो बच्चा स्वयमेव ही शांत होकर सोने लगता है। विज्ञान भी संगीत के द्वारा कई मानसिक एवं शारीरिक रोगों के उपशमन का समर्थन करता है। संगीत श्रवण करते ही मानसिक अशांति Depression आदि दूर हो जाते हैं। इस प्रकार संगीत का अचिन्त्य प्रभाव व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में देखा जाता है । सम्बन्धों को मजबूत बनाने एवं मनोगत भावों को अभिव्यक्त करने का सर्वोत्तम माध्यम संगीत है।
स्तवन के माध्यम से भक्त भगवान के साथ अपना नैकट्य सम्बन्ध स्थापित करता है। अतः स्तवन परमात्म भक्ति एवं पूजा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जो आत्मविशुद्धि में परम सहायक बनता है ।