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188... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
भावों का जीवन में विशेष महत्त्व होता है। जैसे हृदय के बिना शरीर का कोई महत्त्व नहीं है वैसे ही भावों के बिना क्रिया का कोई मूल्य नहीं है। भाव रहित क्रिया मात्र एक रोबोट के समान है, जो काम तो कर सकता है किन्तु संवेदनाओं को नहीं जान सकता। ऐसी क्रियाएँ मात्र कर्म बंधन में ही हेतुभूत बनती है। वहीं शुद्ध भावना भव विनाश में हेतुभूत बनती है। वर्णित अध्याय में भावपूजा रूप चैत्यवंदन विधि के विविध पक्षों का उल्लेख आराधक वर्ग को शुद्ध क्रिया करने में सहायभूत बने यही प्रयास है। संदर्भ-सूची 1. सुविधिनाथ जिन स्तवन, गा. 6 2. स्तुति स्तोत्रादि भावतो भावमाश्रित्य भावपूजेत्यर्थः ।
धर्मरत्नकरंडक, गा. 45 की टीका 3. पडिक्कमणे चेइय जिमण, चरम पडिक्कमण सुअण पडिबोहे ।
चिइवंदण इय जइणो, सत्त वेला अहोरत्ते । पडिक्कमओ गिहिणो विहु, सग वेला पंचवेल इयरस्स। पूआसु तिसंझासु अ, होइ ति वेला जहन्नेणं ।
चैत्यवंदन भाष्य, गा. 59-60 4. णवकारेण जहण्णा, दंडग थुइजुयल मज्झिमा णेया। संपुण्णा उक्कोसा, विहिणा खलु वंदणा तिविहा ।
(क) पंचाशक प्रकरण, 3/2 नमुक्कारेण जहन्ना, चिइवंदण मज्झ दंडथुइजुअला। पण दंड थुइचउक्कग, थयपाणिहाणेहिं उक्कोसा।
(क) चैत्यवंदन भाष्य, गा. 23 नवकारेण जहन्ना, दंडक थुई जमल भिमानेया। संपुना उक्कोसा विहि, जुत्ता वंदणा होई॥
(क) चैत्यवंदन कुलक, पृ. 98 5. नमस्कारेण अंजलिबन्धशिरोनमनादिलक्षणप्रणाममात्रेण, यद्वा नमो
अरिहंताणमित्यादिना, अथवैक श्लोकादि रूप नमस्कार पाठपूर्वक नमस्क्रियालक्षणेन करणभूतेन, जाति निर्देशाद्बहुभिरपि नमस्कारैः क्रियमाणा जघन्या स्वल्पा, पाठक्रियायोरल्पत्वात्, वन्दना भवतीति गम्यम् ।।
(क) धर्मसंग्रह स्वोपज्ञवृत्ति, पृ. 26