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186... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... गुणगान, गुणानुमोदन एवं गुणवर्णन आदि किया जा सकता है तथा स्तवन रचना के पीछे रहे उद्देश्यों की साचवनी हो सकती है। स्तवन बोलने में रखने योग्य विवेक
__ स्तवन बोलते समय श्रावक को क्या-क्या विवेक रखना चाहिए? इसका निर्देशन भी जैनाचार्यों ने अनेक स्थानों पर किया है।
• मन्दिर में स्तवन मंद, मधुर एवं सुरीले स्वर में इस प्रकार गाना चाहिए कि किसी अन्य को उससे बाधा न पहुँचे।
• स्तवन गाते समय अपनी राग, गायन कला आदि के प्रदर्शन के भाव कदापि नहीं होने चाहिए।
• स्तवन रचयिता के नाम को छुपाना या बदलना नहीं चाहिए। • नए फिल्मी रागों के भजन नहीं गाने चाहिए।
• रचयिता के भावों एवं निर्देशित राग आदि को ध्यान में रखकर स्तवन गाना चाहिए।
• स्तवन की शब्द संरचना आदि पर भी ध्यान देना चाहिए। • घिसेपिटे कैसेट के समान एक ही राग का आलाप रोज-रोज नहीं करना
चाहिए।
• जिस रचनाकार की रचना का गान कर रहे हों उनके प्रति भी आदरबहुमान एवं कृतज्ञ भाव होना चाहिए।
• स्वेच्छा से स्तवन में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए। गाथा आदि क्रमानुसार ही गानी चाहिए। स्तवन मानसिक शान्ति का अचूक उपाय
परमात्म भक्ति का मुख्य साधन स्तवन है। चाहे भक्ति संध्या हो, चाहे चैत्यवंदन, चाहे उत्सव-महोत्सव हो या आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति का अवसर। स्तवन एक बहुत ही सुंदर माध्यम है, परमात्मा के समक्ष मनोगत भावों को अभिव्यक्त करने का।
संगीत की एक अनोखी शक्ति है। संगीत केवल शौक या मनोरंजन का ही साधन नहीं अपितु यह तो एक जागृत ऊर्जा है जो कठिनतम कार्यों को भी सिद्ध कर देती है।