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120... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... रखते हुए सुन्दर भावों से युक्त होकर परमात्मा के नव अंगों की पूजा करनी चाहिए। ___ कई लोग इन नौ अंगों के अतिरिक्त परमात्मा की अंजली, लंछन एवं फण आदि की भी पूजा करते हैं किन्तु वर्तमान प्रचलित परम्परानुसार मात्र नौ अंग की ही पूजा करनी चाहिए। परिस्थिति विशेष में या जिस मंदिर में जैसी व्यवस्था हो तदनुसार मात्र चरण युगल की पूजा करके भी जिनपूजा की जा सकती है।
• जिनपूजा का कोई क्रम है या नहीं? पहले किसकी पूजा करना और बाद में किसकी करना?
सर्वप्रथम मूलनायक भगवान की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात अन्य पाषाण प्रतिमाओं एवं पंचधातु की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। महिलाओं को मूलनायक प्रतिमा की दाईं ओर तथा पुरुषों को बाईं ओर से पूजा करनी चाहिए।
यदि मूलनायक प्रतिमा की प्रक्षाल आदि बाकी हो तो पहले अन्य प्रतिमाओं की पूजा करके फिर मूलनायकजी की पूजा कर सकते हैं।
सिद्धचक्रजी एवं पंचधातु प्रतिमा की पूजा करने के बाद पाषाण के प्रतिमाजी की पूजा करने में कोई आशातना नहीं है। गणधर एवं दादा गुरुदेव की पूजा करने के बाद उसी केशर से जिनबिम्ब की पूजा नहीं कर सकते परन्तु यदि गणधर प्रतिमा केवली अवस्था में हो तो उसकी पूजा करने के बाद उसी चंदन से जिनप्रतिमा की पूजा कर सकते हैं। ___ गुरु भगवन्त की प्रतिमा के बाद अधिष्ठायक देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए। __प्रासाद देवी का यदि प्रक्षाल किया जाता हो तो उनकी पूजा देवी-देवताओं के साथ होती है। ___ मंगलमूर्ति एवं अष्टमंगल पट्ट की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि मंगलमूर्ति समवसरण में स्थापित परमात्मा के तीन प्रतिबिम्बों की प्रतीक रूप हैं तथा अष्टमंगल पट्ट रखने की परम्परा अष्टमंगल आलेखन की अपेक्षा से हुई थी
और वह लकड़ी के पट्टों से छोटे धातु में प्रवर्तित हो गई है। अष्टमंगल पट को परमात्मा के सामने रखना चाहिए।