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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...121 चंदन पूजा के विषय में जन धारणाएँ
• कई लोग परमात्मा की चंदन पूजा करने को ही पूजा मानते हैं। यदि किसी दिन चंदन पूजा न हो तो अक्षत पूजा आदि को पूजा नहीं मानते। यह एक भ्रान्त मान्यता है। यहाँ चंदन पूजा न होने पर यह कह सकते हैं कि आज परमात्मा की अंगपूजा नहीं हुई।
• बरास पूजा एवं केशर पूजा को अलग-अलग माना जाता है। दोनों अलग-अलग नहीं हैं अपितु चंदन पूजा के अंतर्गत सुगंधि द्रव्यों की अपेक्षा से केशर आदि का मिश्रण किया जाता है।
• बहुत से लोग परमात्मा के चरणों की बार-बार पूजा करते हैं पर ऐसा कोई विधान नहीं है।
• जितनी अधिक केशर का मिश्रण किया जाए उतना श्रेष्ठ चंदन रस तैयार होता है ऐसा नहीं है। केशर आदि का मिश्रण मौसम के अनुसार करना चाहिए।
• कई लोगों की अवधारणा है कि चंदन पूजा से पूर्व बरास पूजा करना जरूरी है, परन्तु यथार्थत: ऐसा नहीं है। यदि परमात्मा की अंगरचना करनी हो अथवा उसके द्वारा जिनबिम्ब की शोभा बढ़ती हो तो ही बरास पूजा करनी चाहिए अन्यथा बरास पूजा करना आवश्यक नहीं है। चंदनपूजा के लाभ एवं वैशिष्ट्य
चंदन पूजा के निमित्त साक्षात जिनबिम्ब का स्पर्श करने का पुण्य अवसर प्राप्त होता है, इससे जिनबिम्ब में समाहित ऊर्जा का संचरण पूजक के भीतर भी होता है। जिस प्रकार चण्डकौशिक जैसा विषधर सर्प भी परमात्मा के स्पर्श मात्र से शांत एवं समत्वशील बन गया वैसे ही जिनपूजन के दौरान परमात्मा का स्पर्श कर हमारी विषय-कषाय रूप अग्नि शांत हो जाती है तथा स्वाभाविक सौम्यता एवं आत्मिक शीतलता प्राप्त होती है। ___चंदन पूजा के द्वारा नौ अंगों में समाहित विशिष्ट शक्तियों का जागरण पूजार्थी के भीतर भी होता है। कई ऐसी अतिशययक्त प्रतिमाएँ हैं जिनकी अंगपूजा करने से अंग पीड़ा का हरण होता है, ऐसी मान्यता है। ____ आबु के पास चंद्रावती नगरी में हर रोज सवासेर केशर पूजा हेतु उपयोग की जाती थी।