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________________ 110... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... • श्रीकृष्ण की सेना पर छोड़ी गई जराविद्या का निवारण शंखेश्वर पार्श्वनाथ के न्हवण जल से हुआ था और तब ही वहाँ शंखेश्वर तीर्थ की स्थापना हुई। • श्रीपाल एवं सात सौ कोढ़ियों का कोढ़ रोग सिद्धचक्र के प्रक्षाल जल से ही दूर हुआ था। • आचार्य अभयदेवसूरि का कोढ़ रोग स्तम्भन पार्श्वनाथ की प्रतिमा के न्हवण जल के प्रभाव से ही दूर हुआ था। • कांवड़ में नदियों का जल भरके विविध स्थानों पर मात्र अभिषेक हेतु ही ले जाते हैं। • पालनपुर के प्रहलाद राजा का दाह रोग प्रक्षालित जल के स्पर्श से ही शान्त हुआ था। • परमात्मा का साक्षात जन्माभिषेक करते समय 64 इन्द्र असंख्य देवों के साथ उपस्थित होते हैं तथा शक्रेन्द्र स्वयं उन्हें अपनी गोद में लेकर बैठता है। • परमात्मा का अभिषेक करने हेतु सोना, चाँदी, रत्न आदि आठ प्रकार के कलश उपयोग किए जाते हैं। ये कलश 25 योजन लम्बे होते हैं। आठों प्रकार के कलश आठ-आठ हजार, इस प्रकार कुल 64 हजार कलशों से परमात्मा का एक अभिषेक होता है। इस तरह 250 अभिषेक में 1 करोड़ 60 लाख कलशों से तीर्थंकर परमात्मा का जन्माभिषेक किया जाता है। जलपूजा सम्बन्धी जन धारणाएँ • अभिषेक जल को पवित्र, निर्मल एवं पूजनीय दृष्टि से देखा जाता है। परमात्मा की प्रतिमा को स्पर्शित हुआ जल परमात्मा की सकारात्मक ऊर्जा से अभिसिंचित होता है। • जैन परम्परा ही नहीं अन्य परम्पराओं में भी जल को पवित्र ऊर्जा का स्रोत माना गया है। विद्वद वर्ग के अनुसार जल अपवित्रता एवं अशुद्धि को ग्रहण नहीं करता। • हिन्दू परम्परा में गंगाजल, मुसलमानों में आबे-जम-जम आदि को अमृत तुल्य मानकर घरों में रखा जाता है। जैन श्रावक भी विशिष्ट तीर्थों, शांतिस्नात्र आदि के अभिषेक जल को कष्ट निवारण, रोग उपशामक, शुद्धिकारक आदि मानकर घरों में रखते हैं।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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