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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...111 • कई लोगों की मान्यता के साथ यह अनुभवसिद्ध भी है कि शान्ति स्नात्र आदि का जल भूत-प्रेत आदि की बाधा को दूर करता है तथा व्यंतर आदि के उपद्रव को शांत करता है। ___ • आज भी न्हवण जल के प्रयोग से आँखों की रोशनी आना, कैन्सर रोग का मिट जाना, चर्म रोग ठीक हो जाना आदि देखा जाता है।
• जैन परम्परा के अनुसार ण्हवण जल को अंग पर लगाया जा सकता है किन्तु उसका आचमन आदि नहीं करना चाहिए।
• इस प्रकार के चमत्कारों में मुख्य रूप से जीव का उपादान एवं श्रद्धा कार्य करती है। श्रद्धा जितनी बलवती होती है, दुष्कर से दुष्कर कार्यों की सिद्धि उतनी ही सहज होती है। . शंका- उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कई लोगों के मन में यह प्रश्न हो सकता है कि अभिषेक करने मात्र से सामान्य जल में ऐसा परिवर्तन कैसे आ जाता है कि जिससे वह पूज्य एवं प्रभावी बन जाता है।
समाधान- सामान्य जल एवं अभिषेक जल में वही अन्तर होता है जो फुटपाथ पर बिक रही Painting और Showroom में लगी हुई Painting में होता है। रोड पर जिसे हम 100-200 में नहीं खरीदते Showroom या Art Gallery में लगने के बाद उसी को लाखों रुपए देकर खरीदते हैं।
जब सामान्य जल परमात्मा के बिम्ब को स्पर्शित करता है तो बिम्ब में प्रतिष्ठित प्राण ऊर्जा का अंश जल में आ जाता है। पाषाण एवं धातु प्रतिमा से जल का स्पर्श होने पर उसमें जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं वह उसे अधिक प्रभावी बनाते हैं।
अभिषेककर्ता के शुभ अध्यवसाय, वहाँ उच्चारित हो रही मंत्र ध्वनि, शंखनाद, घंटनाद आदि का तथा मन्दिर का शांत वातावरण भी अभिषेक जल में विशिष्ट गुणों का संचार करता है।
न्हवण जल का प्रयोग करने वाले के मन में रहे श्रद्धा भाव एवं विधेयात्मक सोच तथा अभिषेक कर्ताओं के मन में रही जगत कल्याण की भावना भी उसे विशेष प्रभावी बनाती है।
शंका- “वृषभ रूप धरी श्रृंगे जल भरी न्हवण करे प्रभु अंगे" इस पंक्ति का अभिप्राय बताईए?