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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ...109 निर्माल्य किसे कहते हैं? तथा प्रक्षाल आदि निर्माल्य द्रव्य का क्या करना चाहिए? चैत्यवंदन महाभाष्य के अनुसार
भोग-विणटुं दव्वं निम्मलं विन्ति गीयत्था ।।85।। गीतार्थजन भोग से विनष्ट हुए द्रव्य को निर्माल्य कहते हैं। जिनबिम्ब पर चढ़ाने के बाद जो द्रव्य निस्तेज, शोभा रहित एवं पुन: चढ़ाने योग्य नहीं रहे वह निर्माल्य द्रव्य कहलाता है।
जिनबिम्ब पर चढ़ाएँ गए फूल, न्हवण, जल आदि निर्माल्य द्रव्य हैं। अभिषेक से पूर्व उतारे गए फूल आदि को जयणापूर्वक ऐसे स्थान पर सुखा देना चाहिए जहाँ लोगों के पैर आदि नहीं आते हों तथा धूप आदि से उन जीवों को पीड़ा नहीं पहुँचे, इसका पूर्ण विवेक रखना चाहिए। फिर चार-पाँच दिन बाद उन्हें नदी आदि में डाल देना चाहिए।
अभिषेक करने के पश्चात न्हवण जल को भी ऐसे स्थान पर ही प्रतिष्ठापित करना चाहिए। मिट्टी का कुण्ड बनाकर उसमें भी निर्माल्य डाल सकते हैं। उस मिट्टी को हर 7-8 दिन में बदलना चाहिए। कई स्थानों पर गंगा आदि नदियों में भी निर्माल्य जल पधराया जाता है। हर रोज निर्माल्य एवं न्हवण जल का निकास करने हेतु यह सर्वोत्तम मार्ग है।
वर्तमान में कई स्थानों पर मन्दिर के बगीचे आदि में या छत पर भी न्हवण जल डाल दिया जाता है। न्हवण जल कहीं पर भी डाला जाए बस यह विवेक रखना चाहिए कि उस पर पैर आदि नहीं आए हो तथा वहाँ जीवोत्पत्ति नहीं हो। कुछ स्थानों पर न्हवण जल पुजारियों को देने एवं पशु-पक्षियों को पिलाने की परम्परा भी देखी जाती है। यद्यपि इसमें कोई शास्त्रोक्त विरोध तो नहीं लगता परन्तु यह व्यवहार विरुद्ध प्रतीत होता है। इस विषय में गीतार्थ गुरु भगवंतों से मार्गदर्शन लेना चाहिए। परमात्मा को चढ़ाए गए फूल आदि यदि व्यवस्थित रखने या अंगरचना हेतु उतारे जाते हैं तो वे निर्माल्य नहीं कहलाते। वे फूल पुनः चढ़ाए जा सकते हैं। इसी प्रकार वस्त्र आभूषण आदि भी निर्माल्य नहीं कहलाते। अभिषेक पूजा का माहात्म्य एवं विशिष्ट घटनाएँ
• नित्य अभिषेक, अठारह अभिषेक, लघुस्नात्र, अष्टोत्तरी पूजा, 108 अभिषेक आदि में अभिषेक पूजा को विशेष स्थान प्राप्त है।