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प्रतिक्रमण आवश्यक का स्वरूप विश्लेषण ...23
39. वही, 3/120 की टीका 40. पंचविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं जहा- आसवदार पडिक्कमणे. मिच्छत्त पडिक्कमणे, कसाय पडिक्कमणे, जोग पडिक्कमणे, भाव पडिक्कमणे।
स्थानांगसूत्र, मधुकर मुनि, 5/3/222 41. सर्वार्थसिद्धि, 6/2 42. पंचाध्यायी, 2/98-6-7 43. उत्तराध्ययनसूत्र, 32/7 44. प्रवचनसार, गा. 95 45. तत्त्वार्थसूत्र, 8/1 46. देवसिय, राइय पक्खिय चाउम्मासे य वरिसे या
प्रवचनसारोद्धार, 3/183 47. छविहे पडिक्कमे पण्णत्ते, तं जहा-उच्चार पडिक्कमणे पासवण पडिक्कमणे,
इत्तरिए, आवकहिए जं किंचि मिच्छा, सोमणंतिए। स्थानांगसूत्र, 6/125 48. नामट्ठवणा दव्वे, खेत्ते काले तहेव भावे य। एसो पडिक्कमणगे, णिक्खेवो छव्विहो णेओ॥
मूलाचार, 7/614 की टीका 49. पडिक्कमणं देवसियं, रादियं इरियापधं च बोधव्वं । पक्खिय चादुम्मासिय, संवच्छर मुत्तमटुं च ॥
(क) मूलाचार, 7/615 की टीका
' (ख) आवश्यकनियुक्ति, 1235 50. पडिकमणं देवसियं राइयं च, इत्तरियमाव कहियं च। पक्खिय चउम्मासिय, संवच्छर उत्तिमढे य॥
आवश्यकनियुक्ति, 1247 51. वही,1249 52. वही, 1248