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________________ 20... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना करने के पश्चात किया जाने वाला प्रतिक्रमण तथा ज्ञात-अज्ञात में और सहसा गलती होने पर किया जाने वाला प्रतिक्रमण, इत्वरिक प्रतिक्रमण कहलाता है।51 4. यावत्कथिक प्रतिक्रमण- पाँच महाव्रत, रात्रिभोजन विरति, भक्तपरिज्ञा तथा इंगिनीमरण- इन सब में लगे अतिचारों की विशुद्धि करना, यावत्कथिक प्रतिक्रमण कहलाता है।52 यदि उपर्युक्त भेद-प्रभेदों का तुलनात्मक दृष्टि से मनन किया जाए तो उनमें स्वरूप आदि की अपेक्षा से लगभग समानता है, किन्तु प्रतिक्रमण के प्रकारों के सम्बन्ध में संख्या भेद हैं यद्यपि उनमें भी दैवसिक, रात्रिक आदि भेद समान है। सन्दर्भ-सूची 1. प्रतीपं क्रमणं प्रतिक्रमणम्, अयमर्थः शुभयोगेभ्योऽ शुभयोगान्तरं क्रान्तस्य शुभेषु एव क्रमणात्प्रतीपं क्रमणम्। योगशास्त्र स्वोपज्ञवृत्ति 3, पृ. 688 2. प्रतिक्रम्यते प्रमादकृतदैवसिकादिदोषो निराक्रियते अनेनेति प्रतिक्रमणं। गोम्मटसार जीवकाण्ड, भा.2 367 की टीका, पृ. 613 3. नेयं पडिक्कमामि त्ति, भूय सावज्जओ निवत्तामि। तत्तो य का निवत्ति?, तदण मईओ विरमणं जं॥ विशेषावश्यकभाष्य, 3572 4. पडिक्कमामि नाम अपुणक्करणताए अब्भुट्ठमि अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जामि। आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 48 5. स्वस्थानाद् यत्परस्थानं, प्रमादस्य वशाद गतः। तत्रैव क्रमणं भूयः, प्रतिक्रमणमुच्यते ॥ क्षायोपशमिकाद्वापि भावादौदयिकं गतः । तत्रापि हि स एवार्थ:, प्रतिकूलगमात् स्मृतः ॥ पति पति पवत्तणं वा, सुभेषु जोगेसु मोक्खफलदेस। निस्सल्लस्य जतिस्या जं, तेणं तं पडिक्कमणं॥ आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 52 6. पडिक्कमणं पुण...पवयणमादिकादिसु आवस्सगाइक्कमे वा... 'मिच्छामि दुक्कडं' करेति, एवं तस्स सुद्धी।। दशवैकालिक -अगस्त्यचूर्णि, पृ. 13 7. मूलुत्तरावराहक्खलणाए क्खलितो पच्चागतसंवेगे विसुज्झमाणभावो पमातकरणं संभरंतो अप्पणो जिंदण गरहणं करेति। अनुयोगद्वारचूर्णि, पृ. 18
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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