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प्रतिक्रमण क्रिया में अपेक्षित सावधानियाँ एवं आपवादिक विधियाँ ...231 'अपशकुन दुर्निमित्तादि ओहडावणत्यं करेमि काउस्सग्गं करूं? इच्छं।' पुन: अपशकुन दुर्निमित्तादि करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थ सूत्र कहकर एक नवकार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें, पूर्णकर प्रकट में एक नवकार बोलें।
• फिर एक खमासमण देकर पूर्ववत आदेश मांगते हुए दो नवकार का कायोत्सर्ग करें, पूर्णकर प्रकट में तीन नवकार मन्त्र कहें।
• तपागच्छ की परम्परानुसार ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमण देकर कहें- क्षुद्रोपद्रव ओहडावणत्थं काउस्सग्गं करूँ? इच्छं। पुनः क्षुद्रोपद्रव ओहडावत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर 'सागरवरगंभीरा' तक चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर गुरु या वरिष्ठ व्यक्ति 'नमोऽर्हत्' पूर्वक निम्न स्तुति कहें- .
सर्वे यक्षाम्बिकाद्यो ये, वैयावृत्यकरा जिने ।
क्षुद्रोपद्रव-संघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु नः ।। फिर 'नमो अरिहंताणं' पूर्वक कायोत्सर्ग पूर्ण करें। उसके बाद प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें।
प्रश्न- पक्खी प्रतिक्रमण में अतिचार तक छींक आ जाए तो पुन: शुरू से पूरा प्रतिक्रमण करना और उसके बाद छींक आए तो उसका कायोत्सर्ग मात्र ही किया जाता है ऐसा क्यों? देवसी-राई प्रतिक्रमण में देववंदन करते समय छींक आ जाये तो पुन: से देववन्दन करते हैं इसका कारण क्या है?
उत्तर- जिस तरह सामान्य दिनों में काले वस्त्र पहनने का निषेध नहीं होने पर भी दीक्षा, प्रतिष्ठा, महापूजन आदि मांगलिक अवसरों पर उन्हें धारण करने का निषेध किया गया है उसी तरह दैवसिक प्रतिक्रमण में छींक का निवारण न करने पर भी पक्खी वगैरह का प्रतिक्रमण महत्त्वपूर्ण होने से उनमें छींक को टाला जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि पाक्षिक आदि की आराधना एक विशिष्ट अनुष्ठान रूप है। ___ दूसरा, पक्खी प्रतिक्रमण में अतिचार पाठ और सव्वस्सवि पक्खिअं - ये दोनों प्रतिक्रमण के प्रधान पाठ माने जाते हैं इसलिए यहाँ तक छींक आने पर सम्पूर्ण क्रिया पुनः की जाती है। इसके बाद सज्झाय तक छींक आए तो दुबारा सम्पूर्ण विधि करने में जीव का सत्त्व नहीं होता, इसलिए कायोत्सर्ग का विधान किया गया है।