SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 230... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना चाहिए... शांतिर् भवतु जिसका अर्थ है 'शांति हो।' राईय मुँहपत्ति का प्रतिलेखन क्यों? ___यदि साध्वी आचार्य आदि की निश्रारत हो अथवा साध्वीवर्ग में योगोद्वहन चल रहे हों अथवा गृहस्थ उपधान तप कर रहा हो, उन दिनों सुबह आचार्य अथवा गीतार्थ मुनि के समक्ष राईय मुँहपत्ति का प्रतिलेखन किया जाता है। ___यह विधि गुरु से पृथक् प्रतिक्रमण करने पर उसको अधिकृत करने के उद्देश्य से करते हैं तथा साध्वियाँ एवं उपधानवाही बहिने रात्रिक प्रतिक्रमण आचार्य आदि गुरुजनों के साथ नहीं कर सकतीं, इसलिए उनके द्वारा रात्रि सम्बन्धी दोषों की आलोचना के रूप में भी यह विधि की जाती है। इसे छोटा प्रतिक्रमण भी कहते हैं। इस विधि में सर्वप्रथम ईर्यापथ प्रतिक्रमण करते हैं, फिर रात्रि में लगे दोषों से मुक्त होने के लिए मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर दो बार द्वादशावर्त वन्दन करते हैं। फिर इच्छामि ठामि सूत्र बोलकर थोभ वन्दन करते हैं। छींक दोष निवारण विधि शुभ कार्यों में छींक को अमंगल का सूचक माना गया है। पर्व विशेष के दिन किया जाने वाला पाक्षिकादि प्रतिक्रमण आत्मशुद्धि की अपेक्षा अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। इस आराधना को परम मंगलकारी कहा गया है इसलिए पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण में छींक नहीं करनी चाहिए। विशेष रूप से ‘पाक्षिक प्रवेश निमित्त की जाने वाली 'मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन से लेकर समाप्ति खामणा... आदि' कहें, वहाँ तक छींक नहीं करनी चाहिए। परम्परागत सामाचारी के अनुसार पाक्षिक प्रतिक्रमण में यदि अतिचार के पहले छींक आ जाये तो चैत्यवंदन से पुनः प्रतिक्रमण करना चाहिए और अतिचार के बाद छींक आये तो सज्झाय बोलने के पश्चात अथवा बड़ी शांति बोलने के पूर्व छींक का कायोत्सर्ग करना चाहिए। जिस व्यक्ति को छींक आई हो उसे मंगल के लिए जिनालय में स्नात्रपूजा अथवा आयंबिल तप करना चाहिए, ऐसी पूर्वाचार्य अनमत परिपाटी है। खरतरगच्छ की परम्परानुसार कायोत्सर्ग विधि निम्न है• प्रतिक्रमण करने वाले सभी आराधक एक खमासमण देकर कहें
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy