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208... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना पुनः अतिचारों का सेवन करते रहें तो ऐसे प्रतिक्रमण करने से क्या लाभ? इससे तो प्रतिक्रमण न करना ही अच्छा है?
समाधान- आपका कथन उचित नहीं है, क्योंकि पुनः पुनः प्रतिक्रमण करने से पूर्व संचित पापकर्म तो नष्ट होते ही है। साथ ही नये कर्मों का आस्रव भी रूक जाता हैं जैसा कि उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिक्रमण आवश्यक का फल बताते हुए कहा गया है कि इससे व्रतों के छिद्र ढक जाते हैं यानी व्रतादि में जो दोष लगे हैं वे दूर हो जाते हैं। दूसरे, प्रतिक्रमण के माध्यम से दृष्कृत की गुरु समक्ष आलोचना करने पर लज्जानुभव होता है और वह पुनर्दोषों से बचने का संकल्प करता है, जबकि प्रतिक्रमण न करने वाला नि:संकोच दोष सेवन करता है और उसके आस्रव के द्वार प्रतिक्षण खुले रहते हैं।
शंका- प्रतिक्रमण करने के स्थान पर घंटाभर परोपकार के कार्य में लगाया जाये तो अधिक अच्छा है, क्योंकि रूढ़ि प्रवाह से प्रतिक्रमण करने वाले को समय की सार्थकता के अतिरिक्त कुछ भी लाभ नहीं होता है?
समाधान- समझिए, प्रतिक्रमण में पहला सामायिक आवश्यक है। सामायिक करने से 48 मिनट पर्यन्त पापास्रव का निरोध होता है एवं समस्त जीवों को अभय मिलता है, जबकि परोपकार में एक या कुछ व्यक्तियों का ही सहयोग कर पाते हैं। फिर परोपकार के कार्यों में हिंसक प्रवृत्ति भी हो सकती है, जो पाप बंध का कारण होती है, जबकि प्रतिक्रमण में किसी तरह की पाप प्रवृत्ति नहीं होती है।
शंका- अष्टमी-चतुर्दशी आदि तिथियों के दिन नया पाठ क्यों नहीं लेना चाहिए?
समाधान- पूर्वाचार्यों ने दूज, अष्टमी एवं चौदस को चारित्र तिथि माना है। अत: इन तिथियों में सम्यक चारित्र की विशेष आराधना करनी चाहिए, इसीलिए ज्ञान की आराधना पर कम बल दिया गया है।
शंका- चतुर्दशी प्रतिक्रमण के पश्चात आगम अध्ययन, शास्त्र-स्वाध्याय आदि क्यों नहीं करते?
समाधान- पूर्व परम्परा से यह प्रचलित है कि पाक्षिक प्रतिक्रमण के बाद आगम एवं सूत्र-पाठों का अध्ययन आदि नहीं किया जाता। यदि इसके पीछे असज्झाय को कारण माने तो उस दिन प्रतिक्रमण के पश्चात असज्झाय