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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...205 लागू होता है। प्रतिदिन किए गए अभ्यास से सत्संस्कारों का सृजन होता है। साथ ही पापकार्यों में अनुरक्त आत्मा इन सृजित संस्कारों के माध्यम से कभी न कभी तप-संवर रूपी साधन अपनाकर शुद्ध भी बन सकती है। शंका- सॉरी (Sorry) कहना एवं प्रतिक्रमण करना- इन दोनों में क्या अन्तर है तथा जैन धर्म में सॉरी के अनुरूप कौनसा शब्द है? समाधान- जैन जगत में सॉरी के अनुरूप 'मिच्छामि दुक्कडं' शब्द है। शंका- सामायिक लेने से पूर्व गुरु को विधिवत वंदन करते हैं, जबकि पारते समय नहीं करते ऐसा क्यों? समाधान- सामायिक लेने से पूर्व यह उद्देश्य है कि हम आस्रव को छोड़कर संवर की ओर जा रहे हैं। इसमें गुरु की आज्ञा है, जबकि सामायिक पारते समय संवर को छोड़कर पुन: आस्रव की ओर बढ़ते हैं, जिसके लिए गुरु भगवंतों की आज्ञा नहीं है, इसलिए वन्दन नहीं करते हैं। शंका- श्रावक द्वारा मुख्य रूप से बारह व्रतों में लगे दोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है, इन व्रतों में कितने स्वतंत्र हैं एवं कितने परतंत्र हैं? समाधान- पहले अहिंसा अणुव्रत से लेकर ग्यारहवें पौषधोपवास व्रत पर्यन्त सभी व्रत स्वतन्त्र हैं तथा बारहवाँ अतिथि संविभाग व्रत परतन्त्र है, क्योंकि बारहवें व्रत की साधना सुपात्र दान देने से सम्बन्धित है। सुपात्री अन्य होता है, जिसके उपलब्ध होने पर ही बारहवाँ व्रत सम्पन्न होता है। शंका- छहों आवश्यकों में देव-गुरु-धर्म का अन्तर्भाव कैसे है? समाधान- दूसरा चतुर्विंशतिस्तव-देव तत्त्व है, तीसरा वन्दन-गुरु तत्त्व है तथा पहला सामायिक, चौथा प्रतिक्रमण, पांचवाँ कायोत्सर्ग एवं छठवाँ प्रत्याख्यान-धर्म तत्त्व है। शंका- अन्य मतों में प्रचलित संध्या आदि में और जैनों के आवश्यक में क्या अन्तर है? समाधान- दूसरे मतों में प्रचलित संध्या आदि कर्म में केवल ईश्वरस्मरण और प्रार्थना आदि की मुख्यता रहती है वहाँ ज्ञान आचार धर्मों की स्मृति एवं अपने पापों के प्रतिक्रमण की मुख्यता नहीं रहती, परन्तु जैनों के आवश्यक में ज्ञान आदि पंचाचार की स्मृति तथा अपने पापों के प्रतिक्रमण की मुख्यता है, जो आभ्यन्तर परिणामों की दृष्टि से अधिक आवश्यक है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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