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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...195 से आती है, उसको तो चावल परोस रहे हो तब भी मिठाई में ही रस होता है। इस प्रकार रस वस्तु में निहित न होकर वस्तु उपभोग करने वाले के दिल में होता है। यदि प्रतिक्रमण की उपयोगिता और उसके महालाभ समझ में आ जाए तो उसके सामने सभी तर्क असार है और तभी प्रतिक्रमण में रस पैदा हो सकता है। बाकी तो रूचि बिना भी गाड़ी में बैठा हुआ यात्री जैसे अगले स्टेशन पर पहुँच जाता है, उसी प्रकार रस बिना प्रतिक्रमण करने वाले को भी उतने समय तक पाप से दूर रहने का अवसर मिलता है और शुभ क्रिया के संस्कार पड़ते हैं जो उसके लिए भविष्य में उपयोगी बनते हैं। शंका- आजकल ध्यान शिविर आदि में ध्यान आदि से कषाय घटने का अनुभव होता है... तो प्रतिक्रमण आदि क्रिया के स्थान पर ध्यान क्यों नहीं किया जा सकता? समाधान- ध्यान शिविरों में जाने वाले जिस तरह वहाँ के नियमों का पालन करते हैं, वहाँ बताई गई विधिओं को कठोरता से अपनाते हैं, उसी प्रकार यदि प्रतिक्रमण आदि क्रिया में भी रस और उत्साह से जुड़े तो ध्यान आदि से भी अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि यह क्रियाएँ जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा रूप है। ऐसे तो युगलिकों के भी विषय-कषाय अत्यन्त मंद होते हैं लेकिन जब तक वैराग्य उत्पन्न नहीं होता तब तक यह अल्प कषाय भी आत्महित में परिणमित नहीं होते। आजकल के ध्यान शिविरों के उपासक, पहले जो प्रभु पूजा, तपश्चर्या आदि करते थे उसे भी छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें अब इन सब में कष्ट दिखाई देता है। जीव के राग का सबसे बड़ा पात्र है शरीर और इसकी आसक्ति घटाने के लिए क्रिया तप आदि न करें तो वैराग्य संयम कहाँ से जागृत होगा और उसके बिना आत्महित कैसे होगा? यदि शरीर का ममत्व भाव बना रहेगा तो जीव को आज नहीं तो कल यह ममत्व भाव फिर से पाप में खींच लाएगा उससे दुर्गति की परम्परा तो खड़ी ही रहेगी। इस जीवन में जो विषय-कषाय नुकसान कर्ता के रूप में स्पष्ट प्रतीत होते हैं उन विषय कषायों के मंद हुए ज्ञात होने पर एक प्रकार का संतोष आ जाता है। परंतु विषय-कषाय अल्प होने की प्रतीति वाली अवस्था भी आखिर संसार की ही अवस्था है और इससे भी छुटकारा तो पाना ही है, नहीं तो पुन: संसार
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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