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________________ प्रतिक्रमण विधियों के प्रयोजन एवं शंका-समाधान ...175 ज्ञान की विराधना का भी परिमार्जन किया जाता है। उपरोक्त सभी कार्य समभाव में उपस्थित रहकर ही हो सकते हैं एतदर्थ इस आवश्यक में सर्वप्रथम करेमिभंते सत्र बोलते हैं। शंका- कायोत्सर्ग आवश्यक में रत्नत्रय के क्रम की अपेक्षा पहले दर्शनाचार शुद्धि का कायोत्सर्ग होना चाहिए, परन्तु चारित्राचार शुद्धि का होता है और वह भी दो लोगस्ससूत्र का, जबकि दर्शनाचार की शुद्धि निमित्त एक लोगस्स का ही चिंतन करते हैं ऐसा क्यों? समाधान- जिस तरह लंगड़ा मनुष्य आँखों से ठीक देख सकता है फिर भी यदि उसे किसी स्थान पर पहुँचना हो तो उसका लंगड़ापन रूकावट बनता है उसी प्रकार चारित्र के बिना ज्ञान भी लंगड़ा है। चारित्र मोक्ष का अनन्तर कारण होने से विशिष्ट है और चारित्र में दोषों की सम्भावना अधिक होती है इसलिए चारित्र की विशुद्धि हेतु दो लोगस्ससूत्र का ध्यान करने की सामाचारी है। इसी प्रकार ज्ञानाचार की शुद्धि से पूर्व दर्शनाचार की शुद्धि करने का हेतु यह है कि जैसे फिटकरी पानी को निर्मल करती है वैसे ही सम्यग्दर्शन ज्ञान को निर्मल करता है। इसलिए दर्शनाचार की शुद्धि पहले होती है और ज्ञानाचार की बाद में। शंका- श्रुत देवता श्रुत की समृद्धि देने वाले एवं श्रुत भक्ति करने वाले जीवों के ज्ञानावरण आदि कर्मों का क्षय करने में निमित्तभूत होने से इनका कायोत्सर्ग करना उचित है किन्तु श्रुत अधिष्ठातृ देवता व्यन्तर आदि प्रकारों के अन्तर्गत होने से तथा दूसरों के कर्मों का क्षय करने में असमर्थ होने से उनका कायोत्सर्ग युक्तियुक्त नहीं है। दूसरी शंका यह होती है कि ज्ञानातिचार की शुद्धि रूप तीसरे कायोत्सर्ग में श्रुत रूप देवता का स्मरण हो जाता है फिर श्रुत देवता का पृथक् से कायोत्सर्ग क्यों? समाधान- हेतुगर्भ (पृ. 12) में इसका समाधान देते हुए कहा गया है कि श्रुत अधिष्ठातृ देवता का स्मरण 'गोचर शुभ प्रणिधानस्यापि' इस वचन से . कर्मक्षय का हेतु हैं। इस सम्बन्ध में शास्त्र वचन भी है सुयदेवयाइ जीए, संभरणं कम्मक्खयकरं भणियं । नस्थित्ति अकज्जकरी, च एवमासायणा तीए ।। शंका- श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता आदि के कायोत्सर्ग से मिथ्यात्व का प्रसंग आता है इसलिए युक्तिसंगत नहीं है?
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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