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________________ 170... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना करने से समीहित सिद्धि हो जाती है वैसे ही अरिहंत एवं सिद्ध के प्रधान आचार्य आदि को वन्दन करने से इष्ट सिद्धि होती है। शंका- प्रतिक्रमण की स्थापना करते समय दायें हाथ को मुट्ठी रूप में क्यों बांधते हैं? समाधान- मुट्ठी के रूप में की गई मुद्रा दृढ़ संकल्प की सूचक होती है। जिस तरह हमारी मांगें पूरी करके ही हम दम लेंगे... ऐसा दृढ़ निर्धारण करने के लिए रेली में मुट्ठी हवा में उछालते हुए नारे बोले जाते हैं। इसी तरह ‘सव्वस्सवि सूत्र' द्वारा दिन भर में हुए एक-एक पाप का विशेष प्रकार से, विस्तारपूर्वक प्रतिक्रमण करूंगा। ऐसा दृढ़ संकल्प व्यक्त करने में आता है इसलिए मुट्ठी रूप में यह सूत्र बोलते हैं। प्रतिक्रमण की स्थापना करते समय दिल में खेद एवं क्षोभ का अनुभव होना चाहिए। इन्हीं भावों को दर्शाने हेतु यह सूत्र मस्तक झुकाकर बोला जाता है। ‘पाप के भार से झुक गया हूँ' यह अभिव्यक्त करने के लिए भी मस्तक झुकाते हैं। इस क्रिया के दौरान मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्तियों के पश्चात्ताप के रूप में माफी मांगने के लिए और गुरु चरण के स्पर्श की भावना से भी मस्तक झुकाया जाता है। इस तरह यहाँ मस्तक झुकाने के अनेक अभिप्राय हैं। शंका- पाँच आचार में प्रथम तो ज्ञानाचार है, तब दैवसिक प्रतिक्रमण में सबसे पहले चारित्राचार की शुद्धि क्यों की जाती है? समाधान- पाँच आचारों में अपेक्षा से चारित्राचार का अधिक महत्त्व है क्योंकि यही मुक्ति का अनन्तर कारण है, जबकि ज्ञानाचार आदि पारम्परिक कारण है। आवश्यकनियुक्ति (1179, 1174) में कहा गया है कि जम्हा दंसणनाणा,संपुण्णफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुया दिति अ, विसिस्सए तेण चारित्तं । सम्मत्तं अचरित्तस्स, हुज्ज भयणाइ नियमसो णत्थि । जो पुण चरित्तजुत्तो, तस्स उ निअमेण संमत्तं ।। ज्ञान और दर्शन भी चारित्र युक्त हो तो ही सम्पूर्ण फल प्रदान कर सकते हैं इसके बिना नहीं। आवश्यकनियुक्ति में यह भी कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि में चारित्र धर्म वैकल्पिक है नियमा नहीं, किन्तु जो चारित्र युक्त होता है उसमें नियम
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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