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154... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना सामायिक लेने के पश्चात दिवसचरिम प्रत्याख्यान का ग्रहण क्यों?
• दैवसिक प्रतिक्रमण हो या रात्रिक, प्रतिक्रमण कर्ता को दोनों समय दिवस एवं रात्रि के प्रत्याख्यान लेने चाहिए। सन्ध्या के समय लिए जाने वाले प्रत्याख्यान दिवसचरिम कहलाते हैं।
• कोई भी प्रत्याख्यान लेने से पूर्व गुरु को वन्दन करना आवश्यक है। गुरु को वंदन करते समय शरीर के हिलने-डुलने से जीव हिंसा न हो एतदर्थ शरीर की प्रतिलेखना एवं गुरु का विनय करने हेतु मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन किया जाता है। उसके बाद द्वादशावर्त पूर्वक गुरुवन्दन कर प्रत्याख्यान लेते हैं।
• छह आवश्यक के क्रम में प्रत्याख्यान छठवाँ आवश्यक है। परन्तु शास्त्रोक्त समय पर प्रतिक्रमण न करने से इस आवश्यक तक पहुँचते दिवसचरिम प्रत्याख्यान करने (सूर्यास्त पूर्व) का समय बीत जाता है। इसी के साथ एक कारण यह भी है कि छठे आवश्यक तक पहुँचने तक अप्रत्याख्यान की अवस्था में क्यों रहे? इसलिए सामायिक के तुरन्त बाद एक बार प्रत्याख्यान ले लेना चाहिए। वर्तमान परम्परा में लिया भी जाता है। संध्याकाल में किसे कौन सा प्रत्याख्यान लेना चाहिए?
• जिसने उपवास में पानी नहीं पिया हो, उसे चौविहार उपवास का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
• उपवास में पानी पीया हो अथवा आयंबिल, नीवि, एकासना या बियासना आदि तप किया हो तो पाणहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
• दिन में छूटा खाया हो और रात्रि में कुछ भी खाना-पीना नहीं हो तो चौविहार का प्रत्याख्यान लेना चाहिए। यदि ठाम चौविहार पूर्वक आयंबिल, एकासना आदि किया हो तो भी चौविहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
. रात्रि में केवल पानी पीना हो तो तिविहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए। अस्वस्थता आदि कारणों से सूर्यास्त के पश्चात दवा, मुखवास या पानी पीना हो तो दुविहार का प्रत्याख्यान करना चाहिए।
• चौविहार उपवास में चारों आहारों का त्याग कर दिया जाता है इसलिए सन्ध्या को वही प्रत्याख्यान मान्य होता है, अलग से प्रत्याख्यान लेने की जरूरत नहीं है।
देववन्दन- प्रत्याख्यान लेने के पश्चात देववंदन की क्रिया होती है