________________
122... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
पाक्षिक प्रतिक्रमण से पूर्व की विधि- पाक्षिक प्रतिक्रमण करते समय प्रारम्भिक वंदित्तु सूत्र तक की विधि दैवसिक प्रतिक्रमण के समान होती है। उसमें विशेष यह है कि इस प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में 'जयतिहअण स्तोत्र' की तीस गाथाएँ बोलते हैं तथा देववन्दन में 'दें दें कि धपमप०' अथवा 'अविरल कमल०' की चार स्तुतियाँ कहते हैं।
पाक्षिक प्रतिक्रमण प्रवेश- तदनन्तर एक खमासमण देकर कहे'देवसियं आलोइयं पडिक्कंतं इच्छा. संदि. भगवन्! पक्खियं मुहपत्तिं पडिलेहुं?' गुरु- ‘पडिलेहेहा' शिष्य- ‘इच्छं' कहे।
• फिर दूसरा खमासमण देकर मुखवस्त्रिका की विधिवत प्रतिलेखना कर स्थापनाचार्य को द्वादशावर्त वन्दन करें।
• फिर गुरु या ज्येष्ठ साधु कहे- 'पुण्यवन्तों! देवसी के स्थान पर पाक्षिक कहना, छींक की जयणा करना, मधुर स्वर से प्रतिक्रमण पूर्ण करना, उपयोग पूर्वक खांसना, मंडली में सावधान रहना' तब प्रतिक्रमण करने वाले सभी 'तहत्ति' कहें।
संबुद्ध क्षमायाचना- तत्पश्चात विशिष्ट ज्ञानी गुरुओं से क्षमापना करने के लिए खड़े होकर एवं दोनों हाथों को मस्तक पर रखते हुए कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन्! संबुद्धा खामणेणं अब्भुट्ठिओमि अब्भिंतर पक्खिअं खामेउं? इच्छं खामेमि पक्खियं' फिर घुटनों के बल भूमि पर मस्तक रखते हुए और मुखवस्त्रिका को मुख के आगे रखकर ‘पनरसण्हं दिवसाणं पनरसण्हं राईणं एग पक्खस्स- जं किंचि सूत्र' बोलें। यहाँ अब्भुट्ठिओमिसूत्र बोलते समय ज्ञानी गुरुओं से क्षमापना करने का भाव रखना चाहिए।
• साधुविधिप्रकाश के अनुसार गुरु द्वारा संबुद्धा खामणा कर लेने के पश्चात सभी को पूर्ववत प्रत्यक्ष गुरु से क्षमायाचना करनी चाहिए। पाक्षिक में ज्येष्ठ आदि क्रम पूर्वक गुरु सहित तीन मुनियों से मिच्छामि दुक्कडं करना चाहिए। वर्तमान में तीन मुनियों से क्षमायाचना करने की विधि प्रत्येक खामणा के समय की जाती है जो आधुनिक प्रवृत्ति दिखती है।32
पाक्षिक अतिचार एवं तप दान- तदनन्तर गुरु के अवग्रह से बाहर होकर 'इच्छा०! संदि. भगवन्! पक्खियं आलोउं? इच्छं, आलोएमि जो मे पक्खिओ अइआरो कओ...सूत्र' कहने के पश्चात शिष्य कहे- 'इच्छा. संदि.