SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ xil... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना आवश्यक नियुक्ति में विविध अपेक्षाओं से प्रतिक्रमण के आठ पर्यायवाची बतलाए गए हैं- प्रतिक्रमण,प्रतिचरण, प्रतिहरण, वारणा, निवृत्ति, निन्दा, गर्दा एवं शुद्धि। पूर्वकाल से अब तक यद्यपि प्रतिक्रमण के स्वरूप में बहुत से परिवर्तन आए फिर भी उसका मूल रूप यथावत है। शास्त्रकारों के अनुसार तीर्थ स्थापना होने के बाद सर्वप्रथम आवश्यकसूत्र की रचना होती है। छ: आवश्यक रूप प्रतिक्रमण के मूल पाठ इसी सूत्र में गुम्फित है। इसी कारण इस सूत्र का नाम आवश्यक सूत्र है। उत्तराध्ययन सूत्र में षडावश्यक का मूल स्वरूप प्राप्त होता है। पंचवस्तुक में प्रतिक्रमण की मूल विधि का उल्लेख देखा जाता है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में प्रचलित वर्तमान प्रतिक्रमण विधि साधुविधिप्रकाश में प्राप्त होती है। प्रतिक्रमण, यह पाप विमुक्ति की क्रिया है अत: अन्य धर्म सम्प्रदायों में भी किसी न किसी रूप में यह प्रक्रिया अवश्य विद्यमान होनी चाहिए क्योंकि आत्म विशुद्धि को हर धर्म में प्रमुखता दी गई है। __ जैन धर्म की भाँति बौद्ध धर्म में प्रतिक्रमण शब्द का उल्लेख तो नहीं है परन्तु इसके स्थान पर प्रतिकर्म प्रवारणा और पाप देशना शब्द का प्रयोग मिलता है। बौद्ध संघाचार्य शान्तिदेव ने पाप देशना के रूप में दिन और रात्रि में तीनतीन बार स्वयं के द्वारा कृत दुराचारों की आलोचना करने का निर्देश दिया है। प्रवारणा विधि के दौरान सर्व संघ के समक्ष अपने पापों का स्वीकार किया जाता है। उसकी तुलना जैन परम्परा के पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण से कर सकते हैं। जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में प्रतिक्रमण के समय आचार नियमों का पाठ किया जाता है तथा नियम भंग या दो, आचरण का पश्चात्ताप भाव प्रकट किया जाता है। वैदिक परम्परा में संध्या कर्म का विधान करते हए प्रात:काल और सायंकाल में आत्म शुद्धि एवं शरीर शुद्धि का ही उपक्रम किया जाता है। संध्या कर्म में मंत्रोच्चार करते हुए साधक संकल्प करता है कि मैं आचरित पापों के क्षय के लिए परमेश्वर की उपासना सम्पन्न करता हूँ। मन, वचन और काया से दुराचरण का विसर्जन करता हूँ। यह प्रतिक्रमण का ही रूप सुविदित होता है। ईसाई धर्म में पादरी के आगे कन्फेशन भी एक तरह का पाप स्वीकार ही है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy