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________________ 66... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना सूत्र में व्रत छेद के निरोध से होने वाले पाँच लाभ बतलाये गये हैं1. आस्रव का निरोध हो जाता है। 2. अशुभ प्रवृत्ति से होने वाले चारित्र के धब्बे समाप्त हो जाते हैं। 3. आठ प्रवचन माताओं में जागरूकता बढ़ जाती है। 4. संयम के प्रति एकरसता या समापत्ति सध जाती है। 5. समाधि की उपलब्धि होती है। जो इन्द्रियाँ बाह्योन्मुखी हैं वे अन्तर्मुखी हो जाती हैं और मन आत्मा में लीन हो जाता है। इस प्रकार जो प्रतिक्रमण वापस लौटने की प्रक्रिया से शुरू हुआ था, वह धीरे-धीरे आत्म स्वरूप की स्थिति में पहुँच जाता है। यही प्रतिक्रमण का पूर्ण फल है और पूर्ण उपलब्धि है। समाहारतः प्रतिक्रमण नीड़ में लौटने की प्रक्रिया है। 'The coming back' आन्तरिक व्यक्तित्व के विकास की समग्रता है। भव रोग मिटाने की परम औषध है। यह औषधि इतनी मूल्यवान है कि जिसका प्रतिदिन सेवन करने से विद्यमान कषाय आदि रोग शान्त हो जाते हैं और यदि रोग नहीं हो, तो उस औषधि के सेवन से भविष्य में रोग नहीं होते और दोष नहीं लगे हों, तो प्रतिक्रमण भाव और चारित्र की विशेष शुद्धि करता है। प्रतिक्रमण का हार्द साधु एवं गृहस्थ दोनों के लिए प्रतिदिन करणीय छह आवश्यकों में प्रतिक्रमण एक श्रेष्ठ आवश्यक है। जैन धर्म की मान्यता है कि व्यक्ति को अपने अतिक्रमी अर्थात असत व्यवहार का पता चल जाए तो उसका तुरन्त प्रतिक्रमण करना चाहिए। जिसके प्रति गलत व्यवहार हो, किसी प्रकार का मन-मुटाव हो गया हो या जिनके प्रति मन में दुर्भाव आए हों, उनसे प्रत्यक्ष में उपस्थित होकर क्षमा मांगनी चाहिए। यदि लज्जा या भय आदि के कारण वैसा न बन सकें तो गुरु के समक्ष कृत दोषों के लिए स्वयं को धिक् मानकर दंड (प्रायश्चित्त) लेना चाहिए। जो दोष व्यक्ति के स्वयं के भी ध्यान में न आयें अथवा जो स्वाभाविक रूप से हो रहे हैं अथवा जो अनचाहें भी करने पड़ रहे हैं इस प्रकार की दिनभर में हुई भूलों का स्मरण कर दिवसान्त (सायंकाल) में प्रतिक्रमण करना चाहिए। इसी तरह रात्रिकाल में हुए दोषों, स्वप्न आदि में किए गए दुर्विचारों एवं विषय-कषाय
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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