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________________ 64... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना 2. अहिंसा आदि व्रतों को सम्यक् रूप में स्वीकार करना अव्रत का प्रतिक्रमण है। विद्ववर्य चंदनमलजी के उल्लेखानुसार व्रत से शरीर एवं इन्द्रियाँ संयमित होती हैं। स्वच्छन्द वृत्तियों पर नियंत्रण होता है। संयम एवं मर्यादित जीवन स्वास्थ्य का मूलाधार है, जबकि स्वच्छन्दता रोगों का प्रमुख कारण है। अतः जो व्रत निर्वाह पूर्वक जीवन जीते हैं वे अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ होते हैं। 3. अनावश्यक, अनुपयोगी एवं अर्थहीन कार्यों से निवृत्त होना एवं क्षमताओं का पूर्ण सदुपयोग करना प्रमाद प्रतिक्रमण है। प्रमाद का प्रतिक्रमण करने से आत्मजागृति का संचार एवं आत्म विकार दूर होने लगते हैं, फिर आत्मा रूपी मालिक जागृत हो तो शरीर रूपी मकान में राग आदि रोग रूपी चोर के प्रवेश की कभी भी संभावना नहीं रहती है। इस प्रकार आभ्यन्तर रोगोत्पत्ति के कारणों का अभाव होने पर बाह्य रोग भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं उससे स्वास्थ्य लाभ होता है। 4. क्रोध आदि भावों से निवृत्त होना कषाय प्रतिक्रमण है। कषाय का प्रतिक्रमण करते समय क्रोधादि के स्वरूप का चिन्तन करने से इन आवेगों के दुष्प्रभावों का बोध होता है, कषाय भावों में मंदता आती है, भाव विशुद्धि होने से कर्म निर्जरा होती है तथा सकारात्मक सोच का आविर्भाव होने से मानसिक रोगों का उदय नहीं होता है। 5. अशुभ योग का प्रतिक्रमण करने से अकरणीय अशुभ प्रवृत्तियाँ मन्द हो जाती हैं तथा करणीय शुभ कार्यों में प्रवर्त्तन होता है। करणीय शुभ कार्यों में प्रवृत्ति होने से अन्यों को प्रेरणा देने एवं सम्यक् पुरूषार्थ करने वालों की अनुमोदना करने का सहज अवसर उपलब्ध हो जाता है। इस तरह दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ने से चैतसिक प्रसन्नता में दिन दुगुनी अभिवृद्धि और उसके परिणाम स्वरूप शारीरिक स्वस्थता में भी परिवर्धन होता है 142 सामाजिक आदि विविध पक्षों से- प्रतिक्रमण जीवन-शुद्धि का श्रेष्ठ उपक्रम है। इस उपक्रम में आत्म दोषों की आलोचना करने से पश्चात्ताप की भावना जागृत होने लगती है और उस पश्चात्ताप की अग्नि से सभी दोष जलकर नष्ट हो जाते हैं। पापाचरण शल्य के समान है, यदि उसका उन्मूलन न किया जाए और अन्तर्मन में ही छिपाकर रखा जाए तो उसका विष अंदर ही अंदर वृद्धि पाता
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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