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________________ 52... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना में ऐसे अनेक साधन हैं, जिनके द्वारा कुछ न कुछ मानसिक प्रसन्नता प्राप्त की जाती है, परन्तु विचार कर देखने से यह मालूम पड़ता है कि स्थायी मानसिक प्रसन्नता उन पूर्वोक्त तत्त्वों के सिवाय किसी तरह प्राप्त नहीं हो सकती, जिनके ऊपर 'आवश्यक क्रिया' का आधार है। ___ कौटुम्बिक नीति का प्रधान साध्य सम्पूर्ण कुटुम्ब को सुखी बनाना है। इसके लिये छोटे-बड़े सभी में एक दूसरे के प्रति यथोचित विनय, आज्ञा पालन, नियमशीलता और अप्रमाद का होना जरूरी है। ये सब गुण 'आवश्यक क्रिया' के आधारभूत पूर्वोक्त तत्त्वों के पोषण से सहज ही प्राप्त हो जाते हैं। सामाजिक नीति का उद्देश्य समाज को सुव्यवस्थित रखना है। इसके लिए विचारशीलता, प्रामाणिकता, दीर्घदर्शिता और गम्भीरता आदि गुण जीवन में आने चाहिए, जो 'आवश्यक क्रिया' के प्राणभूत पूर्वोक्त छह तत्त्वों के सिवाय किसी तरह नहीं आ सकते। __इस प्रकार शास्त्रीय तथा व्यावहारिक- दोनों दृष्टि से 'आवश्यक क्रिया' का यथोचित अनुष्ठान परम लाभदायक है। मैत्री आदि भावनाओं की दृष्टि से- प्रतिक्रमण पाप शुद्धि की क्रिया है। पाप का सम्बन्ध हिंसादि दोषों से है। इन दोषों का मुख्य कारण प्रज्ञापराध है और प्रज्ञापराध का निवारण करने के लिए मैत्री आदि चार भावनाओं जैसा उत्तम साधन अन्य कोई नहीं है इसलिए प्रतिक्रमण इच्छुक को मैत्री आदि चार भावनाओं का बार-बार आश्रय लेना चाहिए। चार भावनाओं का मूल मैत्री भावना में रहा हुआ है और वह मैत्री भाव निम्न गाथा में सुस्पष्ट रूप से व्यक्त होता है इसलिए इस गाथा का बारम्बार स्मरण करना चाहिए। खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरै मज्झं न केणइ ।। संक्षेप में प्रतिक्रमण केवल सूत्र बोलने की क्रिया नहीं है, परन्तु पाप से मुक्त होने की एक गंभीर क्रिया है। प्रतिक्रमण का ध्येय निश्चित हो जाये तो इसके माध्यम से भवोदधि समुद्र को पार कर सकते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। विविध दृष्टियों से- लेखिका डॉ. विमला भण्डारी ने एक अन्य विद्वान् के मत का उद्धरण देते हुए प्रतिक्रमण को ध्यान का पहला चरण बतलाया है।
SR No.006249
Book TitlePratikraman Ek Rahasyamai Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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