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38... प्रतिक्रमण एक रहस्यमयी योग साधना
• प्रभात और सन्ध्याकाल की आवश्यक धर्म क्रियाओं के लिए प्रतिक्रमण शब्द प्रचलित है क्योंकि इसकी समग्र क्रिया में पापों की निन्दा, गर्दा
और पश्चाताप मुख्य है। जैसे प्रतिक्रमण के द्वारा पूर्वोक्त चार दोषों की शुद्धि होती है वैसे ही सम्यग्दर्शन, पाप विरति, उपशम भाव, संवरनिर्जरा आदि मोक्ष साधक योगों की उत्तम प्रकार से आराधना होती है।
___ पंच प्रतिक्रमण के सूत्रों में दुष्कार्यों की निन्दा, गर्दा और पश्चात्ताप के साथ-साथ सम्यग्दर्शन, पाप विरति आदि मोक्ष साधक योगों की आराधना का अत्यन्त भावभरा वर्णन है। प्रतिक्रमण सूत्रों के रचयिता कौन?
प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के शासन में साधु एवं गृहस्थ के लिए दोनों सन्ध्याओं में प्रतिक्रमण करने का औत्सर्गिक नियम है इसलिए जब तीर्थ की स्थापना होती है उस समय प्रतिक्रमण सूत्रों की रचना अवश्य होती है। तीर्थंकर परमात्मा त्रिपदी के उपदेश में प्रतिक्रमण का स्वरूप अर्थ रूप में कहते हैं उसे गणधर सूत्ररूप में रचते हैं। प्रतिक्रमण सूत्रों की भाषा अत्यन्त रसमय है, अर्थ महागंभीर है, रचना मंत्रमय है। इसके रचयिता सर्वोत्कृष्ट चारित्र के धारक, निर्मल बुद्धि के निधान और करूणा भंडार गणधर पुरुष हैं। यह हकीकत ध्यान में रहे तथा सूत्रों के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव टिका रहे तो प्रतिक्रमण क्रिया में निरसता या कंटाला नहीं आ सकता। एक निष्णात मंत्र ज्ञाता या कुशल वैद्य शरीर में व्याप्त विष को मंत्र या जड़ी-बूटी से समाप्त कर देता है। जिस मंत्र को विष पीड़ित दर्दी समझता नहीं है और उसके प्रभाव को जानता भी नहीं, वही मंत्र उसे शांति का अनुभव कराता है। इसी भाँति प्रतिक्रमण के मंत्र रूप सूत्रों की महिमा अचिन्त्य है। उन सूत्रों के सुनने मात्र से भी महान लाभ होता है। यदि अर्थ का ज्ञान हो जाये तब तो साधक के आत्मानंद की कोई सीमा नहीं रहती। सर्वप्रथम प्रतिक्रमण के सूत्रों का ही ज्ञान क्यों?
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सबसे पहले तत्त्वज्ञानमूलक ग्रन्थों का नहीं, अपितु क्रिया में उपयोगी सूत्रों का ज्ञान दिया जाता है उसमें भी सर्वप्रथम प्रतिक्रमण सम्बन्धी सूत्रों का ज्ञान देते हैं। यहाँ प्रश्न होता है कि ज्ञान मुख्य है या क्रिया? क्योंकि जिनशासन में 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' की उक्ति प्रसिद्ध है। इस वाक्यांश में ज्ञान की प्रधानता दिखती है। इसका समाधान यह है कि जब तक जीवन में